Class 12 Hindi Silver Wedding Question Answer | Vitan
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Class 12 Hindi Silver Wedding Question Answer
1. यशोधर बाबू की अपनी घड़ी में क्या समय था?
उत्तर: यशोधर बाबू की अपनी घड़ी में साढ़े पाँच बज रहे थे। वह अपनी घड़ी को रेडियो समाचारों से मिलाते हैं इसलिए वह सही समय की जानकारी रखते थे।
2. यशोधर बाबू की शादी कब हुई थी?
उत्तर: यशोधर बाबू की शादी छह फरवरी 1947 को हुई थी। इसी वजह से 1972 में उन्हें सिल्वर वैडिंग (शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ) मनाने का मौका मिला।
3. किशनदा कौन थे?
उत्तर: किशनदा (कृष्णानंद पांडे) यशोधर बाबू के गुरु और संरक्षक थे। वह उन्हें सुबह की सैर कराते थे और जीवन के मार्यादा और संस्कार सिखाते थे। यशोधर बाबू उनसे बहुत प्रभावित थे।
4. यशोधर बाबू का बड़ा बेटा क्या करता है?
उत्तर: यशोधर बाबू का बड़ा बेटा भूषण एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी करता है और डेढ़ हज़ार रुपये महीने कमाता है, जो उस समय के लिए बहुत अच्छा वेतन था।
5. “समहाउ इंप्रापर” शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर: “समहाउ इंप्रापर” का अर्थ है – “किसी तरह ठीक नहीं है” या “मुझे यह सही नहीं लगता”। यशोधर बाबू इसे तकिया कलाम की तरह हर बात पर प्रयोग करते हैं क्योंकि वे आधुनिकता को स्वीकार नहीं कर पाते।
6. यशोधर बाबू के बच्चों की कितनी संख्या है?
उत्तर: यशोधर बाबू के चार बच्चे हैं – तीन बेटे (भूषण, और दो अन्य) और एक बेटी। सभी आधुनिक और अपने पिता के विचारों से अलग हैं।
7. पार्टी में यशोधर बाबू किस कारण देर से पहुँचे?
उत्तर: यशोधर बाबू पूजा के लिए बिड़ला मंदिर गए थे और साथ ही घर के लिए सब्जियाँ खरीदने गए थे। इसी वजह से वे साढ़े आठ बजे घर पहुँचे जबकि पार्टी शुरू हो चुकी थी।
8. यशोधर बाबू के जीजा जनार्दन जोशी की क्या स्थिति थी?
उत्तर: यशोधर बाबू के जीजा जनार्दन जोशी की तबीयत खराब थी। उन्हें खबर मिली कि अहमदाबाद में उनके जीजाजी का हाल पूछने जाना होगा।
9. किशनदा यशोधर बाबू को सुबह क्यों जगाते थे?
उत्तर: किशनदा यशोधर बाबू को सुबह जल्दी जगाते थे क्योंकि वे मानते थे कि सुबह जल्दी उठना एक अच्छी आदत है। उन्हें यह कहावत भी याद दिलाते थे – “Early to bed and early to rise makes a man healthy and wise”।
10. बेटों ने यशोधर बाबू को सिल्वर वैडिंग पर क्या उपहार दिए?
उत्तर: बेटों ने यशोधर बाबू को केक, मिठाईयाँ, नमकीन, ठंडी ड्रिंक्स आदि दिए। सबसे खास उपहार था एक ऊनी ड्रेसिंग गाउन जो भूषण ने दिया ताकि वह सुबह दूध लेने जाते समय फटे पुलोवर की जगह इसे पहनकर जाएँ।
10 दीर्घ प्रश्न (LONG QUESTIONS)
1. यशोधर बाबू के व्यक्तित्व में द्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू के व्यक्तित्व में एक गहरा द्वंद्व (संघर्ष) दिखाई देता है। वे पुरानी परंपराओं से जुड़े हुए हैं और आधुनिकता को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाते। लेकिन साथ ही वे जानते हैं कि दुनिया बदल गई है।
एक ओर वे किशनदा की परंपराओं को जीवित रखना चाहते हैं – होली गवाना, जन्यो पुन्यूँ के दिन लोगों को आमंत्रित करना, रामलीला की तालीम देना। लेकिन दूसरी ओर उनके बच्चे इन सब कामों में रुचि नहीं लेते।
जहाँ एक ओर वे फ्रिज, गैस चूल्हा, टीवी को “समहाउ इंप्रापर” कहते हैं, वहीं दूसरी ओर वे जानते हैं कि इन चीजों के बिना समाज में उन्हें कमजोर माना जाता है। इस तरह वे पुरानी और नई दुनिया के बीच फँसे हुए हैं – न वे पूरी तरह पुरानी सोच पर अमल कर सकते हैं और न ही आधुनिकता को पूरी तरह स्वीकार कर सकते हैं।
2. यशोधर बाबू के बच्चों की आधुनिकता और उनके पिता के मूल्यों में क्या संघर्ष दिखाई देता है?
उत्तर:
यशोधर बाबू के बच्चों और उनके बीच एक बड़ा मूल्य संघर्ष दिखाई देता है।
बच्चों की ओर से:
- बड़ा बेटा भूषण विज्ञापन कंपनी में काम करता है और आधुनिक जीवनयापन करता है।
- दूसरा बेटा आई.ए.एस. की तैयारी कर रहा है और “एलाइड सर्विसेज़” को अस्वीकार करता है।
- बेटी जीन और बिना बाँह की ड्रैस पहनती है, जिसे यशोधर बाबू गलत मानते हैं।
- सभी बच्चे पारिवारिक बंधनों को कमजोर मानते हैं और अपने फैसले स्वयं लेना चाहते हैं।
यशोधर बाबू की ओर से:
- वे परिवार के प्रति एकतरफ़ा लगाव रखते हैं और चाहते हैं कि बच्चे भी ऐसा ही करें।
- वे चाहते हैं कि बच्चे उनसे सलाह लें जैसे वह किशनदा से लिया करते थे।
- उन्हें बच्चों की अपनी कमाई पर निर्भरता पसंद नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे परिवार टूट जाता है।
इस संघर्ष का कारण पीढ़ियों में अंतर है। यशोधर बाबू अपने समय की सोच रखते हैं जबकि बच्चे नए युग की सोच वाले हैं।
3. किशनदा की विरासत यशोधर बाबू के जीवन को कैसे आकार देती है?
उत्तर:
किशनदा यशोधर बाबू के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनकी विरासत यशोधर बाबू के पूरे जीवन को नियंत्रित करती है।
किशनदा की सीखें:
- संस्कार और मर्यादा: किशनदा ने यशोधर बाबू को सिखाया कि जीवन में मर्यादा और संस्कार कितने महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि बचपन में गलतियाँ करना ठीक है, लेकिन जिम्मेदारी सर पर पड़ते ही सब सही हो जाता है।
- परंपराओं का पालन: किशनदा की परंपराओं को यशोधर बाबू ने अपने जीवन में जीवंत रखा – सुबह की सैर, संध्या पूजा, पारिवारिक मिलन-जुलन।
- सामाजिक दायित्व: किशनदा के माध्यम से यशोधर बाबू को समझ आया कि परिवार और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी होती है।
- सादा जीवन: किशनदा की परंपरा के अनुसार, यशोधर बाबू सादा जीवन जीते हैं। वे DDA फ्लैट न लेकर सरकारी क्वार्टर में रहते हैं।
कहानी के अंत में भी, जब यशोधर बाबू ध्यान लगाने बैठते हैं, तो उन्हें किशनदा ही दिखाई देते हैं। यह दर्शाता है कि किशनदा उनके मन और आत्मा में बस गए हैं।
4. पत्नी और यशोधर बाबू के बीच मतभेद का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
पत्नी और यशोधर बाबू के बीच मतभेद का मुख्य कारण उनकी अलग-अलग जीवन दृष्टिकोण है।
पत्नी का दृष्टिकोण:
पत्नी वर्तमान समय के अनुसार ढलने के लिए तैयार है। वह कहती है कि यशोधर बाबू के “देखे हुए” संस्कार वास्तव में नहीं हैं – वह किशनदा की सुनी-सुनाई बातों को अपनी आँखों की यादें बना लेते हैं। पत्नी चाहती है कि बच्चों को आधुनिक होने दिया जाए और पुरानी परंपराओं से बाँधा न जाए।
यशोधर बाबू का दृष्टिकोण:
यशोधर बाबू को लगता है कि आधुनिकता से परिवार टूट रहा है। वे परंपराओं को मानते हैं और सोचते हैं कि बच्चों को अपनी सीख देने का अधिकार उनका है।
वास्तविक कारण:
असल में, पत्नी संयुक्त परिवार की पीड़ा से गुजरी है। जब शादी के समय यशोधर बाबू के साथ उनके ताऊजी और उनके बेटे भी रहते थे, तो पत्नी को बहुओं का दर्जा दिया गया था और उन पर कई पाबंदियाँ थीं। इसलिए वह चाहती है कि नई पीढ़ी को इन बंधनों से मुक्त रखा जाए।
यह एक बहुत गहरा विरोध है – न केवल आधुनिकता बनाम परंपरा का, बल्कि बीते दर्द और भविष्य की आजादी का भी।
5. “जो हुआ होगा” वाक्य की कहानी में क्या महत्ता है?
उत्तर:
“जो हुआ होगा” एक बहुत ही महत्वपूर्ण वाक्य है जो किशनदा की जीवन दर्शन को दर्शाता है।
अलग-अलग अर्थ:
- आत्मसमर्पण का दर्शन: किशनदा कहते हैं कि जब कोई दुर्घटना या मृत्यु हो जाए तो “जो हुआ होगा” – यानी जो होना था वह हो गया। इसमें अवश्यंभाविता (जो होना निश्चित था) का दर्शन है।
- भाग्यवाद: यह भाग्य में विश्वास का संकेत है। किशनदा किसी के मृत्यु का कारण पूछे जाने पर कहते हैं – “जो हुआ होगा” – यानी भगवान जानता है।
- अकेलेपन का अनुभव: कहानी के अंत में, यशोधर बाबू को समझ आता है कि किशनदा का “जो हुआ होगा” सिर्फ मृत्यु तक सीमित नहीं है। जीवन के हर चरण में – पीढ़ियों का अंतराल, परिवार का बिखरना, बुढ़ापे की अकेलेपन – सब कुछ में यही दर्शन लागू होता है।
- समर्पण और शांति: किशनदा कहते हैं कि चाहे गृहस्थ हो, ब्रह्मचारी हो, अमीर हो, गरीब हो – सब एसी “जो हुआ होगा” से ही मरते हैं। इसलिए स्वीकार करना और शांत रहना ही सीख है।
यशोधर बाबू के लिए यह वाक्य पहले एक साधारण कहावत था, लेकिन अब वह समझते हैं कि यह एक जीवन विज्ञान है – जीवन को स्वीकार करना और उसके साथ चलना।
6. यशोधर बाबू के बेटे की नई नौकरी पर उनकी प्रतिक्रिया क्या है और वह क्यों है?
उत्तर:
यशोधर बाबू के बड़े बेटे भूषण को विज्ञापन संस्था में नौकरी मिलती है जहाँ उसे डेढ़ हज़ार रुपये महीने का वेतन मिलता है।
यशोधर बाबू की प्रतिक्रिया:
शुरुआत में यशोधर बाबू को इसे समझने में परेशानी होती है। वह कहते हैं कि डेढ़ हज़ार रुपया तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद मिला है, और शुरू ही में यह देने वाली नौकरी में ज़रूर कुछ “पेंच” होगा।
कारण:
- अपने अनुभव के आधार पर: यशोधर बाबू के समय में सरकारी नौकरी ही सबसे सुरक्षित और अच्छी मानी जाती थी। निजी कंपनियों को लेकर उनका विश्वास नहीं है।
- संदेह का स्वभाव: वे परिवर्तन से डरते हैं और हर नई चीज़ को संदेह की दृष्टि से देखते हैं।
- लेकिन गुप्त संतुष्टि: जबकि वह खुलेआम आपत्ति करते हैं, दिल में वह खुश होते हैं। उन्हें इस बात से गर्व होता है कि लोग उन्हें ईर्ष्या का पात्र समझते हैं।
द्वंद्व:
यशोधर बाबू अपने से मानते हैं कि दुनियादारी में बीवी-बच्चे अधिक सुलझे हुए हैं, लेकिन वह दो का चार करने वाली दुनिया को पसंद नहीं करते। यह यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा द्वंद्व है।
7. सिल्वर वैडिंग पार्टी का आयोजन करना यशोधर बाबू को असहज क्यों बनाता है?
उत्तर:
सिल्वर वैडिंग पार्टी यशोधर बाबू को कई कारणों से असहज बनाती है।
मुख्य कारण:
- पश्चिमी परंपरा का संदेह: यशोधर बाबू को लगता है कि यह “वैडिंग एनिवर्सरी” वगैरह सब गोरे साहबों के चोंचले हैं। भारतीय परंपरा में ऐसा नहीं होता। वह कहते हैं कि इसे हमारे यहाँ नहीं माना जाता।
- पत्नी और बच्चों से विरोध: उनकी पत्नी और बच्चे इस पार्टी की तैयारी में रुचि लेते हैं, जबकि यशोधर बाबू चाहते हैं कि सब कुछ सादा रहे। उनके बेटों का अपना ताप्य है – पार्टी को भव्य और आधुनिक बनाना।
- आर्थिक दृष्टिकोण: यशोधर बाबू को ऐसे समारोहों पर होने वाला खर्च बेकार लगता है। वह मानते हैं कि पैसा फिजूल खर्च हो रहा है।
- सामाजिक परिवर्तन: जब वह खुद शादी करते हैं तो कोई खास धूमधाम नहीं होती। वह कोऑपरेटिव से कर्ज़ लेकर सादा ढंग से शादी करते हैं। अब अपनी सिल्वर वैडिंग पर इतना भव्य कार्यक्रम होना उन्हें अजीब लगता है।
लेकिन गहरी खुशी भी है:
अंत में जब यशोधर बाबू देखते हैं कि वह अनाथ लड़का, जिसके जन्मदिन पर कभी लड्डू नहीं आए, आज के दिन उसकी पच्चीसवीं शादी की वर्षगाँठ पर केक, मिठाई, नमकीन, फल और कोल्ड ड्रिंक्स सब कुछ है – तो उन्हें एक गहरी संतुष्टि मिलती है, भले ही वह इसे “समहाउ इंप्रापर” ही कहते हैं।
8. यशोधर बाबू और उनकी पत्नी के संयुक्त परिवार के अनुभव में क्या अंतर है?
उत्तर:
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी का संयुक्त परिवार के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है।
यशोधर बाबू का दृष्टिकोण:
- वह मानते हैं कि संयुक्त परिवार में परंपरा, संस्कार और पारिवारिकता होती है।
- किशनदा के माध्यम से उन्हें लगता है कि परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और देखभाल होती है।
- वह चाहते हैं कि बच्चे भी इसी तरह के बंधन को मज़बूत रखें।
- उनके लिए यह एक आदर्श समाज संरचना है।
पत्नी का दृष्टिकोण:
- जब पत्नी की शादी हुई थी तब यशोधर बाबू के साथ उनके ताऊजी और उनके विवाहित बेटे भी रहते थे।
- संयुक्त परिवार में पत्नी को बहू का दर्जा दिया गया था, न कि पत्नी का।
- उस पर कड़ी पाबंदियाँ थीं – सिर पर पल्लू रखना पड़ता था, सीमित जीवन जीना पड़ता था।
- बहुओं के बीच बहुत तनाव था, लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था।
- यशोधर बाबू ने कभी उसका पक्ष नहीं लिया, सिर्फ जिठानियों को मानते रहे।
वर्तमान के लिए इसका प्रभाव:
पत्नी कहती है कि “मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी।” इसी कारण पत्नी नई पीढ़ी को इन बंधनों से मुक्त रखना चाहती है।
पत्नी का तर्क भी सही है – “तुम अपने किशनदा के मुँह से सुनी-सुनाई बातों को अपनी आँखों देखी यादें बना डालते हो। तुम्हारे पास खुद देखा हुआ कुछ नहीं है। तुम अल्मोड़ा में अपनी विधवा बुआ के साथ थे जहाँ परिवार ही नहीं था, फिर दिल्ली आकर अकेले किशनदा के साथ रहे।”
9. ड्रेसिंग गाउन का उपहार कहानी का अंत कैसे पूरा करता है?
उत्तर:
ड्रेसिंग गाउन का उपहार कहानी का सबसे महत्वपूर्ण और सार्थक अंत है।
शारीरिक अर्थ:
भूषण यशोधर बाबू को ड्रेसिंग गाउन देता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उनके पिता सुबह दूध लेने जाते समय फटे पुलोवर पहनकर जाएँ। यह एक बेटे की अपने पिता के लिए चिंता का प्रतीक है।
प्रतीकात्मक अर्थ:
लेकिन वास्तव में, यह गाउन किशनदा के प्रतीक के रूप में काम करता है। यशोधर बाबू हमेशा किशनदा को ऊनी गाउन, विलायती टोपी, खड़ाऊँ और डंडा लिए हुए याद करते हैं। जब यशोधर बाबू यह गाउन पहनते हैं, तो वह स्वयं किशनदा जैसे दिखने लगते हैं।
भावनात्मक अर्थ:
- पीढ़ियों का संतुलन: यह दर्शाता है कि बेटा अपने पिता को समझता है और उन्हें सम्मान देता है।
- परंपरा का संरक्षण: गाउन पहनकर, यशोधर बाबू अंत में उन परंपराओं को ले जाते हैं जो किशनदा ने सिखाई थीं।
- समझदारी: यह दर्शाता है कि भले ही बेटा आधुनिक है, लेकिन वह अपने पिता के मन और उनकी विरासत को समझता है।
कहानी की पूर्णता:
कहानी की शुरुआत में यशोधर बाबू अपने कार्यालय की घड़ी को “सुस्त” कहते हैं और अपनी सही घड़ी पर विश्वास करते हैं। लेकिन अंत तक, ड्रेसिंग गाउन के माध्यम से, वह समझ जाते हैं कि किशनदा की “धीमी गति” में भी एक सत्य है – जीवन को धीरे-धीरे, शांति से जीना।
नमी का संकेत:
पाठ में कहा गया है कि “उनकी आँखों की कोर में ज़रा-सी नमी चमक गई।” यह दर्शाता है कि यशोधर बाबू को इस पल में अपनी ज़िंदगी की सार्थकता दिखाई दे गई है।
10. अपनी बेटी को आधुनिक कपड़े पहनने देने में यशोधर बाबू की असहमति का मनोविज्ञान क्या है?
उत्तर:
यशोधर बाबू की बेटी को जीन और बिना बाँह की ड्रैस पहनने देने में उनकी असहमति कई गहरी मनोवैज्ञानिक वजहों से है।
सतही कारण:
यशोधर बाबू को लगता है कि यह “समहाउ इंप्रापर” है। वह कहते हैं कि तुम्हारी यह पतलून और सैंडो बनने वाली ड्रैस मुझे ठीक नहीं लगती।
गहरे कारण:
- संस्कृति का भय: यशोधर बाबू को लगता है कि आधुनिक कपड़े भारतीय संस्कृति की हानि कर रहे हैं। उनके लिए, एक महिला का सीमित कपड़ों में रहना ही “शिष्टता” है।
- नियंत्रण का मनोविज्ञान: परिवार में पुरुष का नियंत्रण बनाए रखना पितृसत्ता का एक महत्वपूर्ण अंग है। कपड़े को नियंत्रित करके वह परिवार को नियंत्रित करना चाहते हैं।
- दहेज और विवाह की चिंता: पितृसत्तात्मक समाज में, महिला की पोशाक उसकी “शुद्धता” और “सीमा” का प्रतीक है। यशोधर बाबू को चिंता है कि आधुनिक कपड़े पहनने से बेटी को विवाह में समस्या हो सकती है।
- अपनी शक्तिहीनता का एहसास: लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बेटी का कहना है – “बब्बा, यू आर द लिमिट।” यशोधर बाबू को अपनी शक्तिहीनता का एहसास होता है। वह अपनी बेटी को नियंत्रित नहीं कर सकते।
पत्नी की समर्थन:
पत्नी कहती है – “मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है।” इससे यशोधर बाबू को लगता है कि परिवार उनके विरुद्ध हो गया है।
द्वंद्व का चरम:
यह यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा द्वंद्व है – वह न तो बेटी को नियंत्रित कर सकते हैं और न ही यह स्वीकार कर सकते हैं। इसलिए वह “समहाउ इंप्रापर” कहकर आपत्ति दर्ज करते हैं लेकिन अंत तक बेटी जीन ही पहनती रहती है।
विडंबना:
बेटी जब सिर पर पल्लू रखती है तो पत्नी कहती है – “मैंने तुम्हारे कहने पर बहुत तक समझे, अब मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है।” यह दर्शाता है कि पत्नी को भी यशोधर बाबू की परंपरा में कोई खास विश्वास नहीं रह गया है। वह बेटी को आधुनिक बनाना चाहती है क्योंकि उसे लगता है कि यही उसके भविष्य के लिए सही है।
समाप्ति:
ये सभी प्रश्न यशोधर बाबू के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। कहानी एक सामान्य परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के परिवर्तन, पीढ़ियों के अंतराल, और परंपरा बनाम आधुनिकता के संघर्ष का एक गहरा चित्रण है।
