Class 11 Hindi Chapter 2 Miya Nasiruddin NCERT Solutions and Question Answers | मियाँ नसीरुद्दीन

मियाँ नसीरुद्दीन – पाठ सारांश और प्रश्नोत्तर

📚 मियाँ नसीरुद्दीन

कृष्णा सोबती

लेखिका परिचय

कृष्णा सोबती

जन्म: 18 फरवरी सन् 1925, गुजरात (पश्चिमी पंजाब – वर्तमान में पाकिस्तान)

मृत्यु: 25 जनवरी सन् 2019

प्रमुख रचनाएँ: ज़िंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम (उपन्यास); डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, बादलों के घेरे (कहानी संग्रह); हम-हशमत, शब्दों के आलोक में (शब्दचित्र, संस्मरण)

सम्मान: साहित्य अकादेमी सम्मान, हिंदी अकादेमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार

पाठ सारांश

यह शब्दचित्र ‘हम-हशमत’ नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें लेखिका ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का जीवंत चित्रण किया है।

लेखिका एक दिन दिल्ली के मटियामहल के गढ़ैया मुहल्ले में जामा मस्जिद के पास मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर पहुँचती हैं। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर खानदानी नानबाई हैं।

जब लेखिका उनसे नानबाई का इल्म कहाँ से सीखा, यह पूछती हैं, तो मियाँ बड़े गर्व से बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है। उन्होंने अपने वालिद (पिता) से यह हुनर सीखा है। उनके पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ़ैयावाले के नाम से मशहूर थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे।

मियाँ नसीरुद्दीन अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं। वे बताते हैं कि तालीम की तालीम बड़ी चीज़ होती है। सीधे-सीधे नानबाई का हुनर नहीं सीखा जा सकता। पहले बर्तन धोना सीखना पड़ता है, फिर भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना, तब जाकर नानबाई का हुनर सीखा जाता है।

वे गर्व से बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने बादशाह सलामत की शाही रसोई में काम किया था। एक बार बादशाह ने उनके बुजुर्गों से ऐसी चीज़ बनाने को कहा जो न आग से पके, न पानी से बने। उनके बुजुर्गों ने वह पकवान बनाया और बादशाह ने खूब सराहा। यह बात ‘खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है’ इस कहावत से जुड़ी है।

अंत में मियाँ नसीरुद्दीन दुखी होकर कहते हैं कि अब वे ज़माने नहीं रहे जब लोग पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। अब तो बस तंदूर से निकाली और निगली।

पाठ के मुख्य बिंदु:

  • मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई हैं जो छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाते हैं
  • उन्हें अपने पेशे और खानदानी परंपरा पर बहुत गर्व है
  • वे अपने काम को कला मानते हैं, न कि सिर्फ एक पेशा
  • तालीम की तालीम का महत्व – हर काम में बुनियादी प्रशिक्षण जरूरी है
  • उनके बुजुर्गों ने बादशाही रसोई में काम किया था
  • वे आधुनिक समय में कला की कद्र न होने से दुखी हैं
  • पारंपरिक कला और शिल्प के खोते महत्व पर चिंता

पाठ के साथ – प्रश्नोत्तर

1 मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?

मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा निम्नलिखित कारणों से कहा गया है:

• खानदानी हुनर: वे तीन पीढ़ियों से खानदानी नानबाई हैं। उनके दादा मियाँ कल्लन और पिता मियाँ बरकत मशहूर नानबाई थे।
• विशेषज्ञता: वे छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने में माहिर हैं – बाकरखानी, शीरमाल, ताफ़तान, बेसनी, खमीरी, रुमाली, गाव, दीदा, गाजेबान, तुनकी आदि।
• कला के प्रति समर्पण: वे अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और इसे पूरी निष्ठा से करते हैं।
• शाही परंपरा: उनके बुजुर्गों ने बादशाह सलामत की शाही रसोई में काम किया था।

इन सब कारणों से वे नानबाइयों के लिए मसीहा (उद्धारक/महान) की तरह हैं।

2 लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं?

लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास निम्नलिखित उद्देश्यों से गई थीं:

• जानकारी प्राप्त करना: वे मियाँ नसीरुद्दीन से किस्म-किस्म की रोटी पकाने का इल्म कहाँ से हासिल किया, यह जानना चाहती थीं।
• शब्दचित्र तैयार करना: लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र तैयार करने के लिए उनसे मुलाकात की।
• खानदानी परंपरा जानना: वे उनकी खानदानी नानबाई की परंपरा, उनके पूर्वजों और उनके काम के बारे में विस्तार से जानना चाहती थीं।

लेखिका का उद्देश्य एक कुशल पारंपरिक कारीगर की कला, उसकी विशेषता और उसके व्यक्तित्व को सामने लाना था।

3 बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?

बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी निम्नलिखित कारणों से खत्म होने लगी:

• अनावश्यक विवरण: लेखिका बार-बार यह पूछ रही थीं कि कौन-से बादशाह – बहादुरशाह ज़फर या कोई और। मियाँ के लिए यह विवरण महत्वपूर्ण नहीं था।
• बाल की खाल निकालना: मियाँ नसीरुद्दीन को लगा कि लेखिका बेकार की बारीकियों में उलझ रही हैं, जबकि असली बात तो यह थी कि उनके बुजुर्ग बादशाह की रसोई में काम करते थे।
• व्यावहारिक सोच: मियाँ कहते हैं – “आपको कौन बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्र भेजना है कि डाकखानेवालों के लिए सही नाम-पता ही ज़रूरी है।” यानी उन्हें यह सब औपचारिकता बेमतलब लगी।
• अपने हुनर पर फोकस: उन्हें अपने हुनर और कला पर बात करना ज्यादा पसंद था, न कि इतिहास की बारीकियों में उलझना।

मियाँ नसीरुद्दीन व्यावहारिक व्यक्ति थे जो अपने काम और कला को महत्व देते थे, इतिहास की बारीकियों को नहीं।

4 मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मज़मून न छेड़ने का फैसला किया – इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।

पहले का प्रसंग:

लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से उनके कारीगर बब्बन मियाँ के बारे में पूछा। मियाँ ने रूखाई से जवाब दिया कि वे उनके कारीगर हैं। इसके बाद लेखिका के मन में आया कि वे मियाँ से उनके बेटे-बेटियों के बारे में पूछें।

अंधड़ के आसार क्यों दिखे:

• संवेदनशील विषय: जब लेखिका ने मियाँ के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ (तूफान/दुख) के आसार देखे, तो उन्हें लगा कि यह विषय मियाँ के लिए दर्दनाक हो सकता है।
• व्यक्तिगत पीड़ा: संभवतः मियाँ के बेटे-बेटियों से जुड़ी कोई दुखद स्थिति या उनकी कोई व्यक्तिगत समस्या थी।

बाद का प्रसंग:

लेखिका ने संवेदनशीलता दिखाते हुए यह विषय नहीं छेड़ा और सिर्फ इतना पूछा कि “ये कारीगर लोग आपकी शागिर्दी करते हैं?” मियाँ ने बताया कि वे सिर्फ शागिर्द ही नहीं हैं, बल्कि उन्हें मजदूरी भी देते हैं।

इस प्रसंग से लेखिका की संवेदनशीलता और मियाँ की व्यक्तिगत पीड़ा का पता चलता है। लेखिका ने मानवीयता दिखाते हुए उनके निजी दुख को नहीं कुरेदा।

5 पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?

लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र बहुत ही जीवंत और यथार्थवादी तरीके से खींचा है:

1. शारीरिक विवरण:

• “मौसमों की मार से पका चेहरा”
• “आँखों में काइयाँ भोलापन”
• “पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर”
• “बचे-खुचे दाँतों से खिलखिलाकर हँस दिए”

2. व्यक्तित्व और स्वभाव:

• गर्व से भरा व्यक्तित्व – अपने खानदान और हुनर पर गर्व
• सीधी और रूखी बातचीत – “क्या मतलब! पूछिए साहब”
• व्यावहारिक सोच – अखबारनवीसों को निठल्ला मानना
• अपने काम के प्रति समर्पित

3. संवाद शैली:

लेखिका ने मियाँ की बोलचाल की भाषा को यथावत प्रस्तुत किया है:
• “फ़रमाइए”
• “सुनिए साहब”
• “क्या अखबारनवीस तो नहीं हो?”
• “तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है”

4. भावनात्मक पक्ष:

• अतीत के प्रति नॉस्टैल्जिया – “उतर गए वे ज़माने”
• कला की कद्र न होने का दुख
• अपने पिता-दादा की यादें
• व्यक्तिगत जीवन में छिपा दर्द

5. वातावरण का चित्रण:

• “निहायत मामूली अँधेरी-सी दुकान”
• “चारपाई पर बैठे बीड़ी का मज़ा ले रहे हैं”
• “पटापट आटे का ढेर सूंत रहे”
• गढ़ैया मुहल्ले का जीवंत वर्णन

निष्कर्ष: लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र इतनी कुशलता से खींचा है कि पाठक उन्हें साक्षात् देख और सुन सकता है। यह शब्दचित्र न केवल एक व्यक्ति का चित्रण है, बल्कि एक पूरे युग, संस्कृति और परंपरा का दस्तावेज़ है।

पाठ के आस-पास – प्रश्नोत्तर

1 मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?

मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें बहुत अच्छी लगीं:

1. अपने पेशे के प्रति समर्पण और सम्मान:

मियाँ अपने

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *