Class 11 Hindi Chapter 2 Miya Nasiruddin NCERT Solutions and Question Answers | मियाँ नसीरुद्दीन
📚 मियाँ नसीरुद्दीन
कृष्णा सोबती
लेखिका परिचय
पाठ सारांश
यह शब्दचित्र ‘हम-हशमत’ नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें लेखिका ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का जीवंत चित्रण किया है।
लेखिका एक दिन दिल्ली के मटियामहल के गढ़ैया मुहल्ले में जामा मस्जिद के पास मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर पहुँचती हैं। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर खानदानी नानबाई हैं।
जब लेखिका उनसे नानबाई का इल्म कहाँ से सीखा, यह पूछती हैं, तो मियाँ बड़े गर्व से बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है। उन्होंने अपने वालिद (पिता) से यह हुनर सीखा है। उनके पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ़ैयावाले के नाम से मशहूर थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे।
मियाँ नसीरुद्दीन अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं। वे बताते हैं कि तालीम की तालीम बड़ी चीज़ होती है। सीधे-सीधे नानबाई का हुनर नहीं सीखा जा सकता। पहले बर्तन धोना सीखना पड़ता है, फिर भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना, तब जाकर नानबाई का हुनर सीखा जाता है।
वे गर्व से बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने बादशाह सलामत की शाही रसोई में काम किया था। एक बार बादशाह ने उनके बुजुर्गों से ऐसी चीज़ बनाने को कहा जो न आग से पके, न पानी से बने। उनके बुजुर्गों ने वह पकवान बनाया और बादशाह ने खूब सराहा। यह बात ‘खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है’ इस कहावत से जुड़ी है।
अंत में मियाँ नसीरुद्दीन दुखी होकर कहते हैं कि अब वे ज़माने नहीं रहे जब लोग पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। अब तो बस तंदूर से निकाली और निगली।
पाठ के मुख्य बिंदु:
- मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई हैं जो छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाते हैं
- उन्हें अपने पेशे और खानदानी परंपरा पर बहुत गर्व है
- वे अपने काम को कला मानते हैं, न कि सिर्फ एक पेशा
- तालीम की तालीम का महत्व – हर काम में बुनियादी प्रशिक्षण जरूरी है
- उनके बुजुर्गों ने बादशाही रसोई में काम किया था
- वे आधुनिक समय में कला की कद्र न होने से दुखी हैं
- पारंपरिक कला और शिल्प के खोते महत्व पर चिंता
पाठ के साथ – प्रश्नोत्तर
मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा निम्नलिखित कारणों से कहा गया है:
इन सब कारणों से वे नानबाइयों के लिए मसीहा (उद्धारक/महान) की तरह हैं।
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास निम्नलिखित उद्देश्यों से गई थीं:
लेखिका का उद्देश्य एक कुशल पारंपरिक कारीगर की कला, उसकी विशेषता और उसके व्यक्तित्व को सामने लाना था।
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी निम्नलिखित कारणों से खत्म होने लगी:
मियाँ नसीरुद्दीन व्यावहारिक व्यक्ति थे जो अपने काम और कला को महत्व देते थे, इतिहास की बारीकियों को नहीं।
पहले का प्रसंग:
अंधड़ के आसार क्यों दिखे:
बाद का प्रसंग:
इस प्रसंग से लेखिका की संवेदनशीलता और मियाँ की व्यक्तिगत पीड़ा का पता चलता है। लेखिका ने मानवीयता दिखाते हुए उनके निजी दुख को नहीं कुरेदा।
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र बहुत ही जीवंत और यथार्थवादी तरीके से खींचा है:
• “मौसमों की मार से पका चेहरा”
• “आँखों में काइयाँ भोलापन”
• “पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर”
• “बचे-खुचे दाँतों से खिलखिलाकर हँस दिए”
• गर्व से भरा व्यक्तित्व – अपने खानदान और हुनर पर गर्व
• सीधी और रूखी बातचीत – “क्या मतलब! पूछिए साहब”
• व्यावहारिक सोच – अखबारनवीसों को निठल्ला मानना
• अपने काम के प्रति समर्पित
लेखिका ने मियाँ की बोलचाल की भाषा को यथावत प्रस्तुत किया है:
• “फ़रमाइए”
• “सुनिए साहब”
• “क्या अखबारनवीस तो नहीं हो?”
• “तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है”
• अतीत के प्रति नॉस्टैल्जिया – “उतर गए वे ज़माने”
• कला की कद्र न होने का दुख
• अपने पिता-दादा की यादें
• व्यक्तिगत जीवन में छिपा दर्द
• “निहायत मामूली अँधेरी-सी दुकान”
• “चारपाई पर बैठे बीड़ी का मज़ा ले रहे हैं”
• “पटापट आटे का ढेर सूंत रहे”
• गढ़ैया मुहल्ले का जीवंत वर्णन
निष्कर्ष: लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र इतनी कुशलता से खींचा है कि पाठक उन्हें साक्षात् देख और सुन सकता है। यह शब्दचित्र न केवल एक व्यक्ति का चित्रण है, बल्कि एक पूरे युग, संस्कृति और परंपरा का दस्तावेज़ है।
पाठ के आस-पास – प्रश्नोत्तर
मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें बहुत अच्छी लगीं:
मियाँ अपने
