Bazar Darshan Most Important Questions Class 12 Hindi

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Bazar Darshan Most Important Questions

Table of Contents

Bazar Darshan Most Important Short Questions

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions) – 2 अंक प्रत्येक

प्रश्न 1: बाज़ार का जादू किस पर चलता है और क्यों?

उत्तर:
बाज़ार का जादू उन लोगों पर चलता है जिनका मन खाली हो और जेब भरी हो। जैनेंद्र कुमार के अनुसार, जब कोई खाली मन से बाज़ार जाता है तो उसे पता नहीं होता कि उसे वास्तव में क्या चाहिए। ऐसे में बाज़ार की चकाचौंध उसके मन में असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या जगा देती है। बाज़ार में खड़े होकर व्यक्ति को अपने पास सब कुछ कम दिखने लगता है और उसे लगता है कि उसे और भी बहुत कुछ चाहिए। यह जादू सिर्फ नज़ारे का नहीं है, बल्कि मन की स्थिति पर निर्भर करता है।


प्रश्न 2: लेखक के मित्र बाज़ार से बहुत सारे बंडल लेकर क्यों आए थे?

उत्तर:
लेखक का एक मित्र बाज़ार से अपनी ‘पर्चेज़िंग पावर’ (खरीद शक्ति) के अनुसार ढेर सारा सामान ले आया था। वह बिना यह सोचे कि उसे क्या-क्या चाहिए, बाज़ार की चकाचौंध में फँस गया। उसके पास पैसे थे, इसलिए उसने अपनी ताकत दिखाते हुए जितना संभव हो सके उतना सामान खरीद लिया। यह सामान आवश्यकता के आधार पर नहीं, बल्कि पैसे की शक्ति के आधार पर खरीदा गया था।


प्रश्न 3: ‘पर्चेज़िंग पावर’ से क्या आशय है?

उत्तर:
‘पर्चेज़िंग पावर’ का अर्थ है पैसे की खरीद शक्ति या पैसे की ऊर्जा। यह वह क्षमता है जो किसी व्यक्ति के पास होने वाले पैसे से आती है। पर लेखक कहते हैं कि पैसे की शक्ति तभी है जब उसके पास सामान खरीदने के लिए उपभोग वस्तुएँ उपलब्ध हों। बैंक खाते में पड़े पैसों की कोई शक्ति नहीं है। ‘पर्चेज़िंग पावर’ का वास्तविक रस उसके उपयोग में है – जब वह पैसा किसी चीज़ को खरीदने के लिए खर्च होता है।


प्रश्न 4: चूरण वाले भगत जी की क्या विशेषता थी?

उत्तर:
चूरण वाले भगत जी की प्रमुख विशेषता उनकी संतुष्टि और संयम थी। वे हर दिन केवल छह आने (एक बहुत छोटी रकम) कमाते थे। उन्हें अपनी आवश्यकताओं का सटीक ज्ञान था। जब उन्हें ज़रूरत की चीजें मिल जाती थीं, तो वह बाकी बाज़ार को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर देते थे। बाज़ार की चकाचौंध उन पर कोई असर नहीं डालती थी। वे खुश रहते थे और कभी किसी को बेईमानी नहीं करते थे। उनका मन और व्यवहार हमेशा स्पष्ट रहता था।


प्रश्न 5: बाज़ार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर:
जैनेंद्र कुमार के अनुसार, बाज़ार की सार्थकता उसी व्यक्ति में है जो जानता है कि उसे क्या चाहिए। जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को स्पष्ट समझता है, वह बाज़ार से सीधे और सकारात्मक तरीके से लाभ उठाता है। ऐसे व्यक्ति को बाज़ार की सार्थकता समझ आती है क्योंकि वह अपनी ज़रूरत की चीज़ें खरीदते हैं और बाकी सब चीज़ों को छोड़ देते हैं। बाज़ार की सार्थकता तब आती है जब उसका उपयोग सही उद्देश्य के लिए, सही समय पर किया जाए।


प्रश्न 6: खाली मन से बाज़ार जाने पर क्या होता है?

उत्तर:
खाली मन से बाज़ार जाने पर मनुष्य बाज़ार की चमक-दमक में पूरी तरह फँस जाता है। उसके मन में बहुत सारी चाहें और इच्छाएँ पैदा हो जाती हैं। वह असंतुष्ट हो जाता है और उसे लगने लगता है कि उसके पास बहुत कम है। यह स्थिति व्यक्ति को निराश, ईर्ष्यालु और परेशान बना देती है। बाज़ार का मूक आमंत्रण खाली मन को सभी तरफ से घेर लेता है और वह व्यक्ति पागल हो जाता है, असंतोष से घायल हो जाता है।


प्रश्न 7: लेखक ने किस अर्थशास्त्र को ‘अनीतिशास्त्र’ कहा है?

उत्तर:
लेखक ने उस अर्थशास्त्र को ‘अनीतिशास्त्र’ कहा है जो केवल बाज़ार का पोषण करता है और व्यक्ति की नैतिकता की परवाह नहीं करता है। यह वह शास्त्र है जो केवल खरीद-बिक्री को बढ़ावा देता है, चाहे उससे समाज का कोई भी नुकसान हो। इसमें दोनों पक्ष (खरीदार और विक्रेता) एक-दूसरे को ठगने की कोशिश करते हैं। इस तरह के बाज़ार में शोषण होता है, कपट होता है, और अनैतिक व्यवहार का प्रसार होता है।


प्रश्न 8: बाज़ार का मूक आमंत्रण क्या है?

उत्तर:
बाज़ार का मूक आमंत्रण वह है जो कोई आग्रह या दबाव न दिखाते हुए ही काम करता है। बाज़ार चुप रहकर कहता है- ‘आओ मेरे सामान को देखो, कुछ न भी चाहो तो चलो।’ लेकिन यही मूकता उसे ताकतवर बना देती है। जब कोई दबाव या आग्रह नहीं होता, तो आदमी खुद ही ज़्यादा आकर्षित होता है। बाज़ार का यह शांत आमंत्रण मन में चाह जगाता है, अभाव का बोध कराता है, और फिर व्यक्ति को निर्बल बना देता है।


प्रश्न 9: बाज़ार से बचने का क्या उपाय है?

उत्तर:
लेखक के अनुसार बाज़ार से बचने के मुख्य उपाय ये हैं: पहला, बाज़ार जाने से पहले अपने मन को स्पष्ट कर लें – आपको क्या चाहिए यह तय कर लें। दूसरा, मन को खाली न रखें, बल्कि किसी उद्देश्य से भरा हुआ रखें। तीसरा, अपनी आवश्यकताओं को समझें और उन्हीं तक सीमित रहें। चौथा, कुछ आध्यात्मिक या नैतिक मूल्यों को मजबूत करें ताकि पैसे की शक्ति आपके ऊपर नियंत्रण न रख सके।


प्रश्न 10: बाज़ारूपन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
बाज़ारूपन का तात्पर्य है कपट, बेईमानी और शोषण की वृत्ति। यह वह प्रवृत्ति है जो केवल अपना लाभ देखती है और दूसरे को ठगने का प्रयास करती है। जब बाज़ारूपन बढ़ता है, तो समाज में साहस और भाई-चारे की भावना कम हो जाती है। लोग खरीदार और विक्रेता की तरह व्यवहार करने लगते हैं, भाई-भाई की तरह नहीं। लेखक के अनुसार, जो लोग खाली मन से बाज़ार जाते हैं, उन्हीं के कारण बाज़ारूपन बढ़ता है।

Bazar Darshan Most Important Long Answer Questions

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions) – 5 अंक प्रत्येक

प्रश्न 1: बाज़ार का जादू किस प्रकार काम करता है? खाली मन और भरे मन से बाज़ार जाने में क्या अंतर है?

उत्तर:

बाज़ार का जादू मनुष्य की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। लेखक कहते हैं कि यह जादू तब सबसे ज़्यादा असरदार होता है जब किसी के पास पैसे हों (भरी जेब) और मन खाली हो।

खाली मन से बाज़ार जाना:
जब कोई खाली मन से बाज़ार जाता है, तो उसे पता नहीं होता कि उसे वास्तव में क्या चाहिए। ऐसे में बाज़ार की चमक-दमक उसे पूरी तरह मुग्ध कर देती है। उसके मन में हर चीज़ को खरीदने की इच्छा जगती है। वह अपने आप को कम आकलित करने लगता है और सोचता है कि उसे और भी बहुत कुछ चाहिए। इस स्थिति में व्यक्ति असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल हो जाता है और सदा के लिए बेकार बन सकता है।

भरे मन से बाज़ार जाना:
इसके विपरीत, जब कोई भरे मन से बाज़ार जाता है (अर्थात् अपनी आवश्यकताओं को स्पष्ट जानता है), तो बाज़ार उसके लिए सिर्फ एक माध्यम बन जाता है। वह अपनी ज़रूरत की चीज़ें ले लेता है और बाकी सब को नज़रअंदाज़ कर देता है। ऐसे व्यक्ति को बाज़ार की सार्थकता समझ आती है।

चुंबक का उपमान:
लेखक का कहना है कि बाज़ार का जादू वैसा ही है जैसा चुंबक की शक्ति – यह केवल लोहे पर काम करती है। ठीक वैसे ही, बाज़ार का जादू केवल उन्हीं पर काम करता है जो खाली मन और भरी जेब वाले होते हैं।


प्रश्न 2: चूरण वाले भगत जी के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। वे बाज़ार के जादू से कैसे बचे रहते थे?

उत्तर:

चूरण वाले भगत जी को पाठ में एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

व्यक्तित्व की विशेषताएँ:

  1. संतुष्टि: भगत जी हर दिन केवल छह आने कमाते थे, लेकिन वह इससे पूरी तरह संतुष्ट थे। उन्हें अपनी आय से अधिक कमाने की कोई चाहत नहीं थी।
  2. आत्मज्ञान: उन्हें स्पष्ट पता था कि उन्हें क्या चाहिए। अपनी ज़रूरत की चीज़ें (जीरा, नमक आदि) पाकर वह संतुष्ट हो जाते थे।
  3. खुशमिज़ाज़ी: भगत जी सदा खुश रहते थे। उनका व्यवहार सभी के साथ मधुर और सहज था।
  4. ईमानदारी: पाठ में बताया गया है कि उन्होंने कभी किसी को बेईमानी नहीं की। न तो कोई उन्हें बीस पैसे दे सके और न ही कोई बीमारी उन्हें घेर सकी।

बाज़ार के जादू से बचने के कारण:

  1. उनका मन हमेशा भरा रहता था – उन्हें अपनी आवश्यकताओं का सटीक ज्ञान था।
  2. जब उन्हें अपनी ज़रूरत की चीज़ें मिल जाती थीं, तो पूरा बाज़ार उनके लिए अप्रासंगिक हो जाता था।
  3. उनके पास आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य थे जो पैसे की शक्ति को नियंत्रित करते थे।
  4. भगत जी पैसों के गुलाम नहीं थे – वह पैसों के स्वामी थे।

लेखक की टिप्पणी: लेखक ने कहा कि हालाँकि भगत जी को पढ़ा-लिखा नहीं माना जा सकता, लेकिन उनके पास वह ज्ञान था जो किताबों में नहीं मिलता। भगत जी का जीवन एक पाठ था जिससे सब कुछ सीखा जा सकता है।


प्रश्न 3: लेखक ने बाज़ार की सार्थकता किसमें बताई है? बाज़ार को सार्थकता कौन प्रदान करता है?

उत्तर:

बाज़ार की सार्थकता:
लेखक ने बाज़ार की सार्थकता के बारे में एक महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया है – बाज़ार की सार्थकता इसमें है कि वह आवश्यकता के समय काम आए। लेखक का कहना है कि ‘बाज़ार की असली व्रत्त कार्थकता आवश्यकता के समय काम आना है।’ इसका अर्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता महसूस करता है, तो बाज़ार उसे वह चीज़ प्रदान करता है।

बाज़ार को सार्थकता कौन प्रदान करता है:

जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से समझता है, वही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करता है। जैसे:

  1. भगत जी जैसे लोग: संतुष्ट और आत्मज्ञानी लोग बाज़ार को सार्थकता देते हैं क्योंकि वह ज़रूरत की चीज़ें लेते हैं।
  2. विवेकशील उपभोक्ता: जो कोई भी अपनी ज़रूरतों के अनुसार बाज़ार का उपयोग करता है।
  3. समझदारीपूर्ण व्यय: जो लोग सचेत रहकर खरीदारी करते हैं।

विपरीत स्थिति:
जो खाली मन से, बिना किसी उद्देश्य के बाज़ार जाते हैं, वह बाज़ार को अपार्थक बना देते हैं।

महत्वपूर्ण विचार:
लेखक का यह विचार महत्वपूर्ण है कि बाज़ार का मूल्य तब है जब वह मनुष्य के जीवन में वास्तविक मूल्य जोड़े, न कि जब उसकी चकाचौंध लोगों को गुमराह करे। इसलिए कहा जा सकता है कि एक विवेकशील उपभोक्ता ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करता है।


प्रश्न 4: ‘पर्चेज़िंग पावर’ का सकारात्मक और नकारात्मक उपयोग क्या है? विस्तार से समझाइए।

उत्तर:

‘पर्चेज़िंग पावर’ (क्रय शक्ति) पैसे की वह ऊर्जा है जो किसी को सामान खरीदने की क्षमता देती है।

सकारात्मक उपयोग:

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति: अपनी और परिवार की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए।
  2. सामाजिक विकास: सामाजिक कल्याण के कार्यों में – शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
  3. विवेकपूर्ण खरीदारी: सचेत रहकर, अपनी ज़रूरत समझकर खरीदारी करना।
  4. स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना: स्थानीय दुकानों और कारीगरों से सामान खरीदना।

नकारात्मक उपयोग:

  1. अतिभोग: बिना सोचे-समझे, सिर्फ दिखावे के लिए सामान खरीदना।
  2. असंतोष पैदा करना: अपनी पर्चेज़िंग पावर का प्रदर्शन करके दूसरों में ईर्ष्या और असंतोष पैदा करना।
  3. भड़ौआ व्यवहार: केवल अपनी शक्ति दिखाने के लिए खरीदारी करना (जैसे लेखक का पहला मित्र)।
  4. शोषण का साधन: कमज़ोर लोगों का शोषण करने के लिए अपनी क्रय शक्ति का उपयोग करना।
  5. पैसे की व्यंग्य-शक्ति: किसी को नीचा दिखाने के लिए पैसे का उपयोग करना।

लेखक का निष्कर्ष:
समझदारी से किया जाने वाला व्यय व्रत्त कारी है, लेकिन बेवकूफ़ी से किया जाने वाला व्यय स्वयं को और समाज को नुकसान पहुँचाता है।


प्रश्न 5: लेखक ने किस अर्थशास्त्र को ‘अनीतिशास्त्र’ कहा है और क्यों? बाज़ार और मानवता के संबंध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

अनीतिशास्त्र की परिभाषा:
लेखक ने उस अर्थशास्त्र को ‘अनीतिशास्त्र’ (बेईमानी का शास्त्र) कहा है जो केवल बाज़ार का पोषण करता है और नैतिकता की परवाह नहीं करता।

ऐसे अर्थशास्त्र की विशेषताएँ:

  1. केवल बाज़ार-केंद्रित: केवल खरीद-बिक्री को बढ़ावा, भले ही समाज को नुकसान हो।
  2. कपट और शोषण: खरीदार और विक्रेता एक-दूसरे को ठगने की कोशिश करते हैं।
  3. लाभ-हानि की भावना: एक की हानि में दूसरे का लाभ माना जाता है।
  4. नैतिकता का अभाव: किसी भी नैतिक मूल्य को स्वीकार नहीं करता।

बाज़ार और मानवता का संबंध:

लेखक के अनुसार, बाज़ार और मानवता का संबंध काफ़ी जटिल है:

सकारात्मक संबंध:
जब बाज़ार का उपयोग मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है, तब यह मानवता के लिए लाभकारी है।

नकारात्मक संबंध:
जब बाज़ार का अनीति-शास्त्र सामने आता है, तब वह मानवता के विरुद्ध हो जाता है:

  • आपसी विश्वास कम हो जाता है
  • लोग भाई-भाई की जगह ग्राहक-विक्रेता बन जाते हैं
  • कपट और शोषण बढ़ता है
  • बाज़ारूपन का प्रसार होता है
  • साहस, भाई-चारा और आपसी सहयोग जैसे मानवीय गुण खत्म हो जाते हैं

लेखक का संदेश:
सच्चा अर्थशास्त्र वह है जो नैतिकता के साथ चले, जो मनुष्य की गरिमा को बरकरार रखे। लेकिन यदि अर्थशास्त्र केवल लाभ और बाज़ार को ध्यान में रखे, तो वह अनीतिशास्त्र बन जाता है और मानवता के विरुद्ध काम करता है।


प्रश्न 6: बाज़ार का मूक आमंत्रण क्या है? यह आमंत्रण मनुष्य को किस प्रकार प्रभावित करता है?

उत्तर:

मूक आमंत्रण की परिभाषा:
लेखक के अनुसार, बाज़ार का आमंत्रण मूक (चुप) होता है। वह जोर-जबरदस्ती से नहीं कहता कि ‘आओ, यह खरीदो।’ बल्कि वह शांति से कहता है: ‘आओ भी, नहीं भी आना। बस देख तो लो। क्या हरज़ है देखने में। मेरा रूप तो तुम्हारे लिए ही है।’

मूकता ही ताकत है:
यह मूकता ही बाज़ार की ताकत है। आग्रह से तिरस्कार जगता है, लेकिन मूक आमंत्रण से चाह जगती है। जब कोई दबाव या आग्रह नहीं होता, तो मनुष्य खुद ही ज़्यादा आकर्षित होता है।

मनुष्य पर प्रभाव:

  1. चाह (इच्छा) उत्पन्न करना: बाज़ार की चमक-दमक को देखकर मन में असंख्य चाहें पैदा होती हैं।
  2. अभाव की भावना: आदमी को लगने लगता है कि उसके पास काफ़ी नहीं है। ‘यहाँ कितना अतुलित है और मेरे पास कितना परिमित है।’
  3. असंतोष और तृष्णा: ‘और चाहिए, और चाहिए’ का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता।
  4. ईर्ष्या: दूसरों को ज़्यादा सामान खरीदते देखकर मन में ईर्ष्या जगती है।
  5. मानसिक पीड़ा: ये सभी भाव मिलकर व्यक्ति को ‘असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल’ कर देते हैं।
  6. व्यक्तित्व का विनाश: यह आमंत्रण ‘मनुष्य को सदा के लिए बेकार’ भी बना सकता है।
  7. मूर्छा की स्थिति: कोई अपने को न जाने, तो यह आमंत्रण उसे पागल तक बना सकता है।

निष्कर्ष:
बाज़ार का यह मूक आमंत्रण बहुत ताकतवर है, क्योंकि वह किसी को पता नहीं चलता कि कब हम बाज़ार के जाल में फँस जाते हैं।


प्रश्न 7: लेखक के दोनों मित्रों की बाज़ार यात्रा का वर्णन करते हुए बताइए कि उनके अनुभव में क्या अंतर था?

उत्तर:

लेखक के दोनों मित्रों की बाज़ार यात्रा बिल्कुल विपरीत थी।

पहले मित्र का अनुभव (नकारात्मक):

  1. शाम को बाज़ार से लौटा: पूरी दोपहर बाज़ार में लगा दी।
  2. बहुत सामान खरीदा: ढेर सारे बंडल लेकर आया।
  3. अपनी पर्चेज़िंग पावर का प्रदर्शन: केवल अपनी शक्ति दिखाना चाहता था।
  4. लेखक की टिप्पणी: मित्र ने मनीबैग खोलकर दिखाया और कहा – ‘सब उड़ गया, अब कुछ रेलगाड़ी की टिकट के लिए भी बचा है।’
  5. अनर्थक व्यय: सामान आवश्यकता के अनुसार नहीं, बल्कि पर्चेज़िंग पावर के अनुपात में आया था।

दूसरे मित्र का अनुभव (सकारात्मक):

  1. शाम को लौटा, खाली हाथ: बाज़ार देखते रहा, कुछ नहीं खरीदा।
  2. दुविधा की स्थिति: ‘बाज़ार को देखते रहे’ – जवाब देते हुए असमंजस में पड़ गया।
  3. समझ की कमी: समझ नहीं आ रहा था कि वास्तव में उसे क्या चाहिए।
  4. मन में द्वंद्व: कुछ न कुछ तो लेना चाहिए, लेकिन क्या लूँ?
  5. परिणाम: कुछ भी नहीं ले सका क्योंकि सब कुछ ज़रूरी लग रहा था।

दोनों अनुभवों में अंतर:

पहला मित्रदूसरा मित्र
पैसे की शक्ति से मुग्धबाज़ार की चमक से मुग्ध
खर्च हो गयाकुछ नहीं मिला
दोनों ही असफल थे

कारण: दोनों को अपनी वास्तविक आवश्यकताएँ स्पष्ट नहीं थीं।

भगत जी की तुलना:
भगत जी को अपनी ज़रूरत पता थी (जीरा-नमक), इसलिए वह छोटी पंसारी की दुकान से ज़रूरत की चीजें ले लेते थे और बाकी सारा चौक-बाज़ार उनके लिए अप्रासंगिक हो जाता था।


प्रश्न 8: बाज़ार में पैसे की व्यंग्य-शक्ति क्या है? इसे लेखक ने किस प्रकार समझाया है?

उत्तर:

पैसे की व्यंग्य-शक्ति की परिभाषा:
पैसे की व्यंग्य-शक्ति का तात्पर्य है पैसों का वह प्रभाव जो किसी को चोट पहुँचा सकता है, किसी के अहंकार को दुःख दे सकता है, या किसी को नीचा दिखा सकता है।

लेखक की व्याख्या – एक उदाहरण से:

  1. मोटरकार का दृश्य: लेखक पैदल चल रहे थे कि अचानक एक मोटरकार पास निकल गई। मोटरकार ने धूल उड़ाई।
  2. व्यंग्य की चोट: यह सिर्फ धूल नहीं थी। लेखक को लगा जैसे किसी ने आँखों में उँगली डालकर कहा हो – ‘देखो, यह मोटर है, और तुम इससे वंचित हो! तुम यह नहीं खरीद सकते।’
  3. आंतरिक पीड़ा: इस व्यंग्य ने लेखक को अपनी गरीबी का तीव्र बोध कराया। उन्हें लगा कि काश वे किसी ऐसे परिवार में पैदा हुए होते जहाँ मोटरकार थी।
  4. व्यंग्य की तीव्रता: इस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि यह अपनी ‘तन-मन-धन’ तीनों को बदल सकता है। यह व्यंग्य मनुष्य को अपने सगों के प्रति कृतघ्न भी बना सकता है।

भगत जी पर व्यंग्य का प्रभाव नहीं:
लेकिन जब यही व्यंग्य (या उससे बड़ी व्यंग्य-शक्ति) भगत जी के सामने आती है, तो वह काम नहीं करती। क्यों? क्योंकि भगत जी के पास एक दूसरी शक्ति है – एक आध्यात्मिक या नैतिक शक्ति।

पैसे की व्यंग्य-शक्ति की विशेषताएँ:

  1. दारुण (कठोर): बहुत कठोर होती है।
  2. लक्षित करने वाली: विशेष रूप से कमजोर और आत्मविश्वास के अभाव वाले लोगों को लक्षित करती है।
  3. अहंकार को ठेस: किसी के अहंकार को चोट पहुँचाती है।
  4. तुलनात्मक: ‘मेरे पास है, तुम्हारे पास नहीं’ – इस भाव से पैदा होती है।
  5. सामाजिक विभाजन: समाज में विभाजन और असमानता को बढ़ाती है।

लेखक का निष्कर्ष:
जो व्यक्ति नैतिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत है, पैसे की यह व्यंग्य-शक्ति उसके ऊपर काम नहीं कर सकती। लेकिन जो व्यक्ति आत्मविश्वास से रहित है, पैसे की यह शक्ति उसे तहस-नहस कर सकती है।

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