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Class 12 History Hindi Medium Chapter 3: बंधुत्व, जाति तथा वर्ग Important Question Answers

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Class 12 History, Themes in Indian History Part I, Chapter 3: Kinship, Caste and Class.

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग Important Question Answers

3 Marker बंधुत्व, जाति तथा वर्ग Important Question Answers


प्र.1. महाभारत को सामाजिक इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत क्यों माना जाता है?
उत्तर:

  • महाभारत केवल एक धार्मिक ग्रंथ या महाकाव्य नहीं है, बल्कि इसमें उस समय के सामाजिक, पारिवारिक और राजनीतिक जीवन का गहन चित्रण है।
  • इसमें वंशावली (genealogies), उत्तराधिकार, विवाह नियम, स्त्रियों की स्थिति और जाति-व्यवस्था पर विस्तार से उल्लेख है।
  • इस कारण यह प्रारंभिक भारतीय समाज और उसकी परंपराओं को समझने का एक जीवंत स्रोत है।

प्र.2. ‘गोत्र’ (Gotra) की संकल्पना का क्या अर्थ है?
उत्तर:

  • ‘गोत्र’ का अर्थ है पितृवंश या पिता के माध्यम से वंश का निर्धारण।
  • ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार विवाह में गोत्र बहिर्विवाह (exogamy) का नियम था अर्थात् एक ही गोत्र के स्त्री-पुरुष आपस में विवाह नहीं कर सकते थे।
  • यह व्यवस्था समाज में रक्त-संबंधों की पवित्रता बनाए रखने के लिए बनाई गई थी।

प्र.3. वर्ण व्यवस्था की चार मुख्य श्रेणियों के नाम लिखिए और उनकी भूमिकाएँ बताइए।
उत्तर:

  • ब्राह्मण: वेदों का अध्ययन और शिक्षण, यज्ञ करना और कराना।
  • क्षत्रिय: राज्य की रक्षा करना और युद्ध करना।
  • वैश्य: कृषि, व्यापार और पशुपालन करना।
  • शूद्र: अन्य तीन वर्णों की सेवा करना।
  • इस प्रकार वर्ण व्यवस्था ने समाज को विभिन्न कार्यों के आधार पर विभाजित किया।

प्र.4. महाभारत में स्त्रियों की स्थिति के बारे में हमें क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:

  • स्त्रियों को सामान्यतः संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित रखा गया था।
  • विवाह और संतानोत्पत्ति में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना गया।
  • कुछ अपवाद भी मिलते हैं जैसे द्रौपदी का उदाहरण, जिसने एक से अधिक पति स्वीकारे (पांडव)।
  • कुछ विदुषी स्त्रियों (जैसे ऋग्वेद में घोषा, लोपामुद्रा) का भी उल्लेख मिलता है।

प्र.5. पितृसत्तात्मक (Patriarchy) समाज की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. वंश और उत्तराधिकार पिता के माध्यम से तय होता था।
  2. सम्पत्ति पर अधिकार मुख्यतः पुरुषों का होता था।
  3. विवाह के बाद स्त्रियों को पति के घर रहना पड़ता था और उनकी भूमिका सीमित होती थी।

प्र.6. ‘दास’ और ‘दासी’ का प्राचीन समाज में क्या स्थान था?
उत्तर:

  • प्रारंभिक वैदिक समाज में दास का अर्थ विदेशी जनजातियों के लिए था।
  • बाद में इसका अर्थ ‘ग़ुलाम’ या ‘सेवक’ से जुड़ गया।
  • दास और दासी घर के काम, कृषि कार्य और सेवा में लगे रहते थे और यह श्रेणी समाज में सबसे निम्न मानी जाती थी।

प्र.7. धर्मशास्त्रों में विवाह की कौन-कौन सी शर्तें दी गई थीं?
उत्तर:

  • विवाह का उद्देश्य संतान उत्पत्ति और वंश को आगे बढ़ाना था।
  • गोत्र बहिर्विवाह और वर्ण अंतर्विवाह को महत्त्व दिया गया।
  • स्त्रियों को पति के साथ धर्मपालन में सहभागी माना गया।
  • विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती थी।

प्र.8. ‘आश्रम व्यवस्था’ के अंतर्गत जीवन के चार चरण कौन से थे?
उत्तर:

  1. ब्रह्मचर्य आश्रम – विद्यार्थी जीवन, शिक्षा और आत्मअनुशासन।
  2. गृहस्थ आश्रम – विवाह, संतानोत्पत्ति और समाज के प्रति कर्तव्य।
  3. वानप्रस्थ आश्रम – परिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्ति और जंगल में साधना।
  4. संन्यास आश्रम – पूर्ण त्याग, ध्यान और मोक्ष की प्राप्ति।

प्र.9. स्मृति और श्रुति ग्रंथों में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • श्रुति: वे ग्रंथ जो ईश्वर-प्रदत्त माने जाते हैं, जैसे वेद और उपनिषद।
  • स्मृति: वे ग्रंथ जो मानव-रचित हैं और सामाजिक नियम-व्यवस्था बताते हैं, जैसे मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति।
  • श्रुति को शाश्वत और सर्वोच्च माना गया, जबकि स्मृति को समयानुसार बदलने योग्य समझा गया।

प्र.10. वंशावली (Genealogy) शासकों के लिए क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर:

  • शासक अपनी सत्ता को वैध सिद्ध करने के लिए स्वयं को प्रसिद्ध वंशों से जोड़ते थे।
  • महाकाव्यों और पुराणों में राजाओं की वंशावलियाँ लिखी गईं।
  • इससे न केवल उनका राजनीतिक अधिकार मजबूत होता था बल्कि धार्मिक और सामाजिक स्वीकार्यता भी मिलती थी।

8 Marker बंधुत्व, जाति तथा वर्ग Important Question Answers


प्र.1. महाभारत को प्रारंभिक भारतीय समाज के पुनर्निर्माण का महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों माना जाता है?
उत्तर:

  • महाभारत केवल एक धार्मिक महाकाव्य नहीं है, बल्कि इसे इतिहास (Itihasa) कहा गया है।
  • इसमें कौरव-पांडव युद्ध की कथा है, लेकिन साथ ही इसमें समाज, परिवार और जाति-व्यवस्था का वास्तविक चित्रण मिलता है।
  • प्रमुख कारण:
    1. इसमें विवाह संबंधी नियमों (गोत्र, अंतर्विवाह-बहिर्विवाह) की जानकारी है।
    2. वंश परंपरा और पितृसत्तात्मक व्यवस्था का उल्लेख मिलता है।
    3. स्त्रियों की स्थिति (जैसे द्रौपदी का उदाहरण) सामने आती है।
    4. दास और दासी जैसे शोषित वर्गों का उल्लेख है।
    5. शासक वंशों (कुरु वंश) की वंशावली दर्ज है।
    6. इसे बार-बार पुनर्लेखित और संशोधित किया गया, जिससे विभिन्न कालों के समाज का प्रतिबिंब मिलता है।
  • इसलिए, इतिहासकारों ने महाभारत को समाज की संरचना समझने के लिए सबसे विश्वसनीय ग्रंथ माना है।

प्र.2. ‘वर्ण व्यवस्था’ की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • वर्ण व्यवस्था समाज को चार मुख्य श्रेणियों में बाँटने की प्रणाली थी।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    1. चार वर्ण:
      • ब्राह्मण: ज्ञान और धर्म का पालन।
      • क्षत्रिय: शासन और युद्ध।
      • वैश्य: कृषि, व्यापार और पशुपालन।
      • शूद्र: सेवा कार्य।
    2. इसे पुरुषसूक्त (ऋग्वेद) से वैदिक मान्यता मिली।
    3. ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को ‘द्विज’ (दो बार जन्मे) कहा गया, जबकि शूद्र को इस अधिकार से वंचित किया गया।
    4. वर्ण जन्म के आधार पर तय होते थे, कर्म के आधार पर नहीं।
    5. शूद्रों और अछूतों (चांडाल) को सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों से बाहर रखा गया।
    6. वर्ण व्यवस्था ने सामाजिक असमानता को स्थायी बनाया।
  • इस प्रकार वर्ण व्यवस्था समाज की संरचना और शक्ति संतुलन का प्रमुख आधार थी।

प्र.3. धर्मशास्त्रों में विवाह और स्त्रियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:

  • विवाह को समाज का अनिवार्य संस्कार माना गया।
  • विवाह संबंधी नियम:
    1. गोत्र बहिर्विवाह – एक ही गोत्र में विवाह निषिद्ध।
    2. वर्णानुसार विवाह – उच्च वर्णों को अपने ही वर्ण में विवाह करना चाहिए।
    3. विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी।
  • स्त्रियों की भूमिका:
    1. विवाह और संतानोत्पत्ति को स्त्री का प्रमुख कर्तव्य माना गया।
    2. उन्हें पैतृक सम्पत्ति में अधिकार नहीं दिया गया।
    3. स्त्रियों को पति के साथ ‘धर्म पालन’ में सहभागी माना गया।
    4. अपवादस्वरूप कुछ स्त्रियों को शिक्षा और सम्मान भी मिला (जैसे ऋग्वेद की विदुषी स्त्रियाँ, द्रौपदी की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका)।
  • निष्कर्षतः, धर्मशास्त्रों ने स्त्रियों को पुरुष के अधीन रखा, परन्तु समाज में उनकी नैतिक और पारिवारिक भूमिका को स्वीकार किया।

प्र.4. पितृसत्तात्मक (Patriarchy) व्यवस्था के अंतर्गत परिवार और उत्तराधिकार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • प्राचीन भारतीय समाज पितृसत्तात्मक था, जिसमें पिता को परिवार का मुखिया माना जाता था।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    1. वंश परंपरा पिता के माध्यम से तय होती थी (पितृवंश)।
    2. सम्पत्ति का उत्तराधिकार पुत्रों को मिलता था।
    3. कभी-कभी ज्येष्ठ पुत्र को सम्पूर्ण अधिकार मिलता (Primogeniture), और कभी सभी पुत्र साझा उत्तराधिकारी होते (Coparcenary)।
    4. स्त्रियों और कन्याओं को संपत्ति से वंचित रखा जाता था।
    5. विवाह के बाद स्त्री को पति के घर जाना होता था (पितृलोकनिष्ठा)।
    6. परिवार में पुरुष का अधिकार सर्वोच्च माना जाता था।
  • इस प्रकार पितृसत्ता ने समाज में स्त्री की स्थिति सीमित कर दी और पुरुष को सम्पूर्ण अधिकार प्रदान किए।

प्र.5. बौद्ध और जैन धर्म ने ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था को किस प्रकार चुनौती दी?
उत्तर:

  • ब्राह्मणवादी व्यवस्था वर्ण और जाति पर आधारित थी।
  • बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण:
    1. बुद्ध ने कहा कि मनुष्य का मूल्य उसके कर्म से है, जन्म से नहीं।
    2. सभी वर्णों और स्त्रियों को संघ में प्रवेश की अनुमति थी।
    3. अहिंसा और करुणा को सर्वोपरि माना गया।
  • जैन धर्म का दृष्टिकोण:
    1. महावीर ने सभी जीवों में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया।
    2. उन्होंने तपस्या, सत्य और अहिंसा को महत्व दिया।
    3. जाति आधारित भेदभाव का विरोध किया।
  • परिणाम:
    1. इन धर्मों ने समाज को अधिक समतामूलक और नैतिक आधार दिया।
    2. उन्होंने वर्ण व्यवस्था और ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती दी।
  • निष्कर्षतः, बौद्ध और जैन परंपराएँ भारतीय समाज में वैकल्पिक और सुधारात्मक धारा लेकर आईं।

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