Pahalwan Ki Dholak Important question Answer | Class 12 Hindi Chapter 13

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Pahalwan Ki Dholak Important question Answer

Table of Contents

Pahalwan Ki Dholak Important question Answer – SHORT ANSWER QUESTIONS

पहलवान की ढोलक – महत्वपूर्ण प्रश्न

Class 12 Hindi | फणीश्वर नाथ रेणु


प्रश्न 1: लुट्टन पहलवान का परिचय दीजिए

उत्तर: लुट्टन पहलवान एक गरीब गाँव का निर्भीक और शक्तिशाली पहलवान था। उसके माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ कर गए। विधवा सास ने उसका पालन-पोषण किया। बचपन से ही वह गाय चराता, दूध पीता और कसरत करता था। गाँव के लोग उससे डरते थे और उसकी ताकत के चर्चे होते थे। बाद में वह राजा साहब के दरबार में जाकर राज-पहलवान बन गया।


प्रश्न 2: ढोलक के साथ लुट्टन का रिश्ता क्या था?

उत्तर: लुट्टन के लिए ढोलक केवल एक वाद्य यंत्र नहीं था, बल्कि उसका असली गुरु था। ढोलक की आवाज़ उसे साहस और शक्ति देती थी। कुश्ती करते समय ढोलक की थाप पर उसके दाँव-पेंच चलते थे। गाँव में महामारी के समय भी ढोलक बजाकर वह लोगों में जीने की आस जगाता रहा। उसका कहना था – “मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है।”


प्रश्न 3: राज कुमार के आने से लुट्टन के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर: बूढ़े राजा साहब के बाद नए राजकुमार ने राज्य पर कब्जा कर लिया। नई व्यवस्था में लुट्टन को दरबार से निकाल दिया गया। उसे बताया गया – “टेरिबुल!” अब वह अपने गाँव लौट आया। उसके पास दरबार का खर्च और सुविधाएँ नहीं रहीं। उसे गाँव के किसानों और मजदूरों के बच्चों को कुश्ती सिखानी पड़ी। यह परिवर्तन उसके जीवन में कठिनाई लाया।


प्रश्न 4: चाँद सिंह कौन था और वह लुट्टन से कैसे भिड़ा?

उत्तर: चाँद सिंह, जिसका नाम “शेर के बच्चे” था, एक मशहूर पहलवान था। वह अपने गुरु बाणे सिंह के साथ मेले में आया था। युवा और अहंकारी लुट्टन ने उससे लड़ने की चुनौती दे दी। कुश्ती बहुत रोचक हुई। आखिरकार लुट्टन ने चाँद सिंह को हराया और अपनी ताकत साबित की। इस जीत के बाद राजा साहब ने उसे पुरस्कृत किया।


प्रश्न 5: गाँव में महामारी फैलने के बाद कैसा माहौल बन गया?

उत्तर: अचानक गाँव पर मलेरिया और हैज़े की महामारी का प्रकोप हुआ। लोगों की मौतें होने लगीं। घर-घर खाली हो गए। लोगों का साहस टूट गया। दिन के समय तो कुछ आशा दिखाई देती थी, पर रात का अंधकार भयावह हो जाता था। लोगों की बोलने की शक्ति भी जाती रहती थी। ऐसे निराश समय में केवल ढोलक की आवाज़ ही लोगों में सजीवनी शक्ति भरती रही।


प्रश्न 6: लुट्टन के दोनों बेटों का अंत कैसे हुआ?

उत्तर: लुट्टन के दोनों बेटे भी महामारी की गिरफ्त में आ गए। असहनीय पीड़ा से त्रस्त होकर उन्होंने अपने पिता से कहा – “बाबा! उठा पेंच दो वाला ताल बजाओ!” जब दोनों बेटे मर गए, तब भी लुट्टन ने रात भर ढोल बजाया। अगली सुबह उसने दोनों बेटों को नदी में बहा दिया। पर फिर भी वह ढोल बजाता रहा। इससे गाँव के लोगों का साहस दोगुना हो गया।


प्रश्न 7: ढोलक बजाने से लुट्टन को क्या-क्या फायदे मिलते थे?

उत्तर: ढोलक बजाना लुट्टन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। इससे उसे अपने आप को जीवित रखने की ताकत मिलती थी। ढोल की आवाज़ से गाँव के भूखे, बीमार और मरते हुए प्राणियों में जीने की इच्छा जागती थी। वह मौत से लड़ने की शक्ति देती थी। ढोल बजाते हुए लुट्टन अपने दर्द को भूल जाता था और दूसरों को सांत्वना देता रहता था।


प्रश्न 8: “यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने की समस्या है” – इस कथन को समझाइए

उत्तर: यह कथन पुरानी भारतीय संस्कृति और आधुनिकता के बीच टकराव को दर्शाता है। ‘भारत’ का अर्थ है – लोक संस्कृति, कलाएँ, परंपराएँ और सरल जीवन। ‘इंडिया’ आधुनिकता, विदेशी तरीके और नई व्यवस्था को दर्शाता है। जब नई राजनीतिक व्यवस्था आई, तो लोक कलाओं को महत्व नहीं दिया गया। कुश्ती जैसी पुरानी कलाओं को भुलाया जाने लगा, जिससे लुट्टन जैसे कलाकार को कष्ट उठाना पड़ा।


प्रश्न 9: कहानी के अंत में ढोल की “पोल” से क्या आशय है?

उत्तर: ढोल की पोल यानी ढोल का फट जाना प्रतीकात्मक है। जब लुट्टन ढोल बजाते हुए मर गया, तब लोगों को पता चला कि ढोल फट गया है। यह दर्शाता है कि लोक कला और परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं। “पोल” यह भी सवाल छोड़ जाती है – क्या यह पोल पुरानी व्यवस्था की है या नई व्यवस्था की? क्या कला केवल व्यवस्था के ऊपर निर्भर है?


प्रश्न 10: रेणु की लेखनी की विशेषता क्या है?

उत्तर: फणीश्वर नाथ रेणु एक आंचलिक लेखक हैं। उनकी विशेषताएँ हैं – (1) गाँव की भाषा, संस्कृति और लोक जीवन का सजीव चित्रण, (2) पात्रों को बहुत प्रामाणिकता से दिखाना, (3) गद्य में संगीत का प्रयोग, (4) प्रकृति का मानवीकरण, (5) स्थानीय बोली और मुहावरों का सुंदर उपयोग। इस कहानी में ये सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं।



Pahalwan Ki Dholak Important question Answer – LONG ANSWER QUESTIONS

प्रश्न 1: पहलवान की ढोलक कहानी के माध्यम से रेणु ने समाज के किन मुद्दों को उजागर किया है?

उत्तर:

फणीश्वर नाथ रेणु की यह कहानी कई महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करती है:

1. लोक कलाओं का ह्रास: कहानी दर्शाती है कि स्वतंत्रता के बाद आधुनिकता के चलते पारंपरिक कलाओं को नजरअंदाज़ किया जाने लगा। कुश्ती जैसी कला जो कभी राजाओं का प्रिय खेल था, अब अप्रासंगिक हो गई।

2. गरीबी और भूख: गाँव की गरीबी इतनी गहरी थी कि लुट्टन का पहलवानी का शौक पाल ही नहीं सकती। उसके बेटों को भी भूख से मरना पड़ा। यह दर्शाता है कि विकास केवल शहरों में हुआ, गाँवों को भुला दिया गया।

3. महामारी और अव्यवस्था: मलेरिया और हैज़े की महामारी से गाँव की तबाही दिखाई जाती है। इससे प्रशासनिक असफलता और लोक कल्याण के प्रति उदासीनता का संदेश मिलता है।

4. सांस्कृतिक संकट: “भारत” पर “इंडिया” के छा जाने से दिखता है कि भारतीय संस्कृति कितनी तेजी से बदल रही थी। परंपरा और आधुनिकता का यह संघर्ष ही समाज की असली समस्या है।

5. कला और मानवता: कहानी यह भी सवाल उठाती है कि क्या कला केवल व्यवस्था के ऊपर निर्भर है? क्या मनुष्यता की साधना के लिए कला अनिवार्य नहीं है?


प्रश्न 2: लुट्टन के चरित्र का विश्लेषण करते हुए उसकी शक्तियों और कमजोरियों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

लुट्टन की शक्तियाँ:

1. शारीरिक शक्ति: लुट्टन एक अद्वितीय पहलवान था। उसकी बल और दक्षता का कोई मुकाबला नहीं था। वह सभी नामी पहलवानों को हरा सकता था।

2. मानसिक दृढ़ता: महामारी के समय जब गाँव निराश हो गया, तब लुट्टन ने हिम्मत नहीं हारी। दोनों बेटों की मौत के बाद भी वह ढोल बजाता रहा। यह मानसिक साहस की निशानी है।

3. कला के प्रति समर्पण: ढोलक के प्रति उसका प्रेम और समर्पण अतुलनीय था। उसने कला को एक जीवन दर्शन बना लिया।

4. सामाजिक दायित्व: लुट्टन ने अपनी ताकत का उपयोग केवल अपने लिए नहीं, बल्कि गाँव के लोगों को साहस देने के लिए किया।

लुट्टन की कमजोरियाँ:

1. आर्थिक विवशता: लुट्टन गरीब था। पहलवानी का शौक पालने के लिए पैसे नहीं थे। गाँव के बच्चों को सिखाकर भी वह पेट नहीं भर सकता था।

2. व्यवस्था पर निर्भरता: जब व्यवस्था बदल गई, तो वह असहाय हो गया। नई राजनीतिक व्यवस्था के साथ वह तालमेल नहीं बैठा सका।

3. शिक्षा का अभाव: लुट्टन अशिक्षित था। इससे वह नई दुनिया को समझ नहीं पाया।

4. बीमारी और मौत के आगे की शक्तिहीनता: जब महामारी ने उसके बेटों को छीन लिया, तो वह कुछ भी नहीं कर सका। जीवन और मृत्यु के आगे उसकी सारी ताकत बेकार थी।

इस प्रकार, लुट्टन एक त्रासद चरित्र है जो शक्तिशाली होते हुए भी समाज की परिस्थितियों के आगे लाचार है।


प्रश्न 3: ढोलक की आवाज़ का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव था? विस्तार से समझाइए।

उत्तर:

ढोलक की आवाज़ का गाँव के लोगों पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव था:

1. जीवन देने वाली शक्ति: महामारी के समय जब गाँव मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तब ढोल की थाप एक संजीवनी शक्ति बन गई। कहानी में लिखा है – “यही आवाज़ मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।” ढोल की आवाज़ से मरते हुए लोगों में जीने की इच्छा जग जाती थी।

2. आशा का संदेश: रात की निराशा और अंधकार में ढोल की आवाज़ एक दीप की तरह काम करती थी। यह बताती थी कि कोई अभी जीवित है, कोई अभी लड़ रहा है। इससे लोगों में आशा जगती थी।

3. साहस और शक्ति: जब लुट्टन के दोनों बेटे मर गए, तो संतप्त माता-पिताओं ने कहा – “दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर लुट्टन की हिम्मत तो देखो! ढोल ही उसका हाथ है!” इससे गाँव के लोगों को नई शक्ति मिलती थी।

4. सांत्वना और समायोजन: ढोल की आवाज़ से लोगों को अपनी पीड़ा भूलने में मदद मिलती थी। निराश माता-पिता भी ढोल की थाप सुनकर थोड़ी शांति पाते थे।

5. सांस्कृतिक पहचान: ढोल की आवाज़ गाँव की परंपरा और संस्कृति का प्रतीक था। इससे लोगों को अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अनुभव होता था।

6. सामूहिकता का संदेश: ढोल एक सामूहिक वाद्य यंत्र है। इसकी आवाज़ से पूरे गाँव को एकता का अनुभव होता था। यह संदेश देती थी कि सब एक हैं, सब साथ हैं।

इस प्रकार, ढोलक केवल एक संगीत वाद्य नहीं थी, बल्कि एक जीवन दर्शन, सामाजिक शक्ति और सांस्कृतिक पहचान थी।


प्रश्न 4: कहानी की संरचना और रचना शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

संरचना (Structure):

1. पूर्वपीठिका (Prologue): कहानी की शुरुआत से ही गाँव के दुःख और निराशा का वर्णन होता है। अंधेरी रात, सियारों की दर्दभरी आवाज़ें, भूखे और बीमार लोग – सब कुछ एक निराशाजनक माहौल बनाता है।

2. वर्तमान और अतीत का मिश्रण: कहानी वर्तमान (महामारी का समय) और अतीत (लुट्टन के अतीत के गौरवपूर्ण दिन) को बारी-बारी से प्रस्तुत करती है।

3. चरम बिंदु (Climax): लुट्टन के दोनों बेटों की मौत कहानी का चरम बिंदु है। इस पर सब कुछ केंद्रित है।

4. अंत: लुट्टन की मौत और ढोल की पोल का खुलना – यह सब कुछ एक त्रासद अंत बनाते हैं।

रचना शैली (Style):

1. वर्णनात्मक शैली: रेणु ने बहुत विस्तृत और जीवंत वर्णन किया है। छोटी-छोटी चीजें भी बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की गई हैं।

2. ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग: “चट्-धा, गिड-धा” जैसे ध्वन्यात्मक शब्द कहानी में संगीत और जीवंतता लाते हैं।

3. प्रकृति का मानवीकरण: रात को जीवंत किया गया है – “रात अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती है।” सियार और पेंच को इंसानी गुण दिए गए हैं।

4. स्थानीय भाषा और मुहावरों का प्रयोग: “बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा,” “राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए” – ये सब मुहावरे कहानी को प्रभावी बनाते हैं।

5. कुश्ती की कमेंट्री शैली: ढोल की आवाज़ के द्वारा कुश्ती का बयान किया गया है। क्रिकेट की कमेंट्री की तरह, यहाँ कुश्ती की कमेंट्री है।

6. संवाद का प्रयोग: सीधे संवादों से पात्रों का चरित्र उजागर होता है।

7. संकेतात्मकता: ढोल की पोल, नई व्यवस्था, महामारी – सब कुछ प्रतीकात्मक है।

इस प्रकार, रेणु की लेखनी बहुत कुशल है और कहानी की संरचना और शैली दोनों ही बहुत प्रभावी हैं।


प्रश्न 5: “कला की प्रासंगिकता व्यवस्था की मुखापेक्षी है या उसका कोई स्वतंत्र मूल्य भी है?” – इस सवाल पर कहानी के संदर्भ में विचार कीजिए।

उत्तर:

यह कहानी इस गहरे सवाल को केंद्र में रखती है कि कला समाज के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

कला की व्यवस्था पर निर्भरता:

1. पुरानी व्यवस्था में कला का महत्व: राजा साहब के समय में कुश्ती एक प्रतिष्ठित कला थी। लुट्टन को दरबार में रखा जाता था, उसे सम्मान मिलता था, अच्छे भोजन और कपड़े मिलते थे। इससे कला का विकास होता था।

2. नई व्यवस्था में कला का अवमूल्यन: जैसे ही व्यवस्था बदली, कला का महत्व समाप्त हो गया। लुट्टन को निकाल दिया गया। कला के कलाकार को भिखारी की तरह जीवन बिताना पड़ा।

कला का स्वतंत्र मूल्य:

1. आत्मिक और आध्यात्मिक महत्व: लुट्टन के लिए ढोल केवल पेशा नहीं था, बल्कि उसका जीवन था। महामारी के समय वह ढोल बजाकर गाँव को जीवित रखता था। यह दर्शाता है कि कला का अपना अमर मूल्य है।

2. मानवता की रक्षा: जब समाज में केवल मौत था, तब ढोल की आवाज़ ने मानवता को बचाया। यह साबित करता है कि कला व्यवस्था से परे एक उच्च मूल्य है।

3. सांस्कृतिक पहचान: कला एक संस्कृति का दर्पण है। यह समाज की आत्मा है। बिना कला के कोई समाज अधूरा है।

4. सामाजिक अस्मिता: ढोल की आवाज़ से गाँव को अपनी पहचान मिलती थी। जब व्यवस्था विफल हुई, तब केवल कला ही बची।

निष्कर्ष:

कहानी से साफ संदेश निकलता है कि:

  • कला को व्यवस्था की अपेक्षा अवश्य रहती है, लेकिन कला का स्वतंत्र मूल्य भी है।
  • अगर व्यवस्था कला को मारती है, तब भी कला मानवता को बचाती है।
  • कला केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि जीवन की आवश्यकता है।
  • सच्ची कला कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकती।

यह कहानी पाठकों से पूछती है – क्या हम अपनी परंपरा और कला को इतनी आसानी से भूल सकते हैं? क्या आधुनिकता के नाम पर हम अपनी आत्मा को भेंट कर सकते हैं?


प्रश्न 6: कहानी में पात्रों की प्रस्तुति कितनी सार्थक है? पात्रों के माध्यम से रेणु ने क्या संदेश दिए हैं?

उत्तर:

लुट्टन पहलवान:

विशेषताएँ: लुट्टन का चरित्र अत्यंत मानवीय और प्रभावी है। वह न केवल शारीरिक रूप से शक्तिशाली है, बल्कि मानसिक रूप से भी दृढ़ है। उसमें एक विशेष करुणा और सामाजिक दायित्व है।

संदेश: रेणु लुट्टन के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि सच्ची ताकत शारीरिक शक्ति में नहीं, बल्कि आत्मिक दृढ़ता में निहित है। दुःख के समय भी मानवता को कभी नहीं भूलना चाहिए।

चाँद सिंह (शेर के बच्चे):

विशेषताएँ: वह एक प्रतिभाशाली पर अहंकारी पहलवान है। युवा, सुंदर और आत्मविश्वासी।

संदेश: यह पात्र दर्शाता है कि अहंकार ही पतन का कारण है। चाहे कितनी भी ताकत हो, लेकिन विनम्रता के बिना कोई भी गिर सकता है। लुट्टन की जीत चाँद के अहंकार को तोड़ती है।

राजा साहब:

विशेषताएँ: वह एक न्यायप्रिय और कलाप्रेमी व्यक्ति हैं। वह लुट्टन की प्रतिभा को पहचानते हैं और उसे संरक्षण देते हैं।

संदेश: राजा साहब दिखाते हैं कि किस तरह सत्ता और संरक्षण कला का विकास कर सकते हैं। लेकिन उनकी मृत्यु से दिखता है कि यह संरक्षण कितना अस्थिर है।

राज कुमार:

विशेषताएँ: वह प्रतीकात्मक पात्र है। उसका चेहरा नहीं, केवल उसके फैसले दिखते हैं।

संदेश: नई व्यवस्था को दर्शाता है जो पुरानी कलाओं को महत्व नहीं देता। आधुनिकता के नाम पर परंपरा को ढोल-निकाल देता है।

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