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Shirish Ke Phool Important Question Answer | Class 12 Hindi Chapter 14 Aroh

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Shirish Ke Phool Important Question Answer

Table of Contents

Shirish Ke Phool Important Question Answer – Short Answer Questions

शिरीष के फूल – महत्वपूर्ण प्रश्न


प्रश्न 1: शिरीष का पुष्प कौन सा है और वह किन परिस्थितियों में फूलता है?

उत्तर: शिरीष का पुष्प (फूल) एक विशेष प्रकार का कोमल और सुंदर फूल है। यह गर्मी की सबसे प्रचंड ऋतु (जेठ का महीना) में फूलता है। जब तेज धूप, लू और आँधी चल रहे होते हैं, तब भी यह पुष्प अपनी कोमलता को बनाए रखते हुए फूलता रहता है। अन्य फूल इतनी कठोर परिस्थितियों में नहीं फूल सकते। शिरीष के पुराने फल खड़खड़ाते हैं, लेकिन नई पत्तियाँ और फूल सुंदरता से निकल आती हैं। यह फूल बहुत कोमल होता है, पर भीतर से बहुत मजबूत है।


प्रश्न 2: लेखक ने शिरीष को अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?

उत्तर: अवधूत वह व्यक्ति होता है जो सांसारिक बंधनों, दुःख-सुख और भय से मुक्त रहता है। शिरीष भी उसी तरह है। जब धरती और आसमान जलते हैं, महामारी और दुःख चारों ओर फैले होते हैं, तब भी शिरीष अपनी कोमलता को नहीं भूलता। वह किसी से नहीं डरता, न सुख की चाहना करता है, न दुःख से रोता है। ठीक अवधूत की तरह, शिरीष भी “ना मैं उठूँ, ना मैं बैठूँ” की मानसिकता से रहता है। लेखक के शब्दों में – “यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है।”


प्रश्न 3: शिरीष के पुराने फलों की खड़खड़ाहट से क्या संकेत मिलता है?

उत्तर: शिरीष के पुराने फलों की खड़खड़ाहट वसंत ऋतु के आने का संकेत है। जब नई पत्तियाँ और फूल आने लगते हैं, तब पुरानी चीज़ें अपनी जगह छोड़ देती हैं। लेखक इसे समाज में पुरानी और नई पीढ़ी के द्वंद्व (संघर्ष) के रूप में देखते हैं। पुराना सदा अधिकार की लिप्सा करता है, लेकिन नया उसे धकेलकर बाहर निकाल देता है। यह परिवर्तन का नियम है। जो पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को जगह नहीं देती, वह खुद ही बाहर निकल जाती है। यह प्रकृति का अटल कानून है।


प्रश्न 4: कविता और साहित्य के लिए कवि के पास कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए?

उत्तर: लेखक के अनुसार, सच्चे कवि में दो गुण एक साथ होने चाहिए – (1) योगी की अनासक्ति (विषयों से मुक्ति), (2) प्रेमी का हृदय (भावनाएँ और संवेदनशीलता)। अनासक्ति से कवि का हृदय स्थिर रहता है, वह किसी के लिए मोह नहीं पालता। प्रेमी का हृदय उसे संवेदनशील बनाता है, वह सबके दुःख को अनुभव करता है। साथ ही, कवि को फक्कड़ (अलिप्त) होना चाहिए। जो किए-कराए का हिसाब-किताब रखता है, वह सच्चा कवि नहीं हो सकता। शिरीष इसी तरह ईख (गन्ने) के तने से अपना रस निकालता है और उसे सहजता से दे देता है।


प्रश्न 5: “हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” – इस वाक्य से लेखक का क्या आशय है?

उत्तर: इस वाक्य में लेखक गांधीजी की बात कर रहे हैं। उन्हें अफसोस है कि गांधीजी जैसे अवधूत (संन्यासी) स्वभाव वाले महापुरुष अब नहीं हैं। गांधीजी वायुमंडल से रस खींचकर (आध्यात्मिक शक्ति से) इतने कोमल थे और इतने कठोर भी थे। वे शिरीष की तरह ही सभी कठिन परिस्थितियों में अविचल रहते थे। आज का समय ऐसे महापुरुषों को भूल गया है। हर जगह केवल शारीरिक शक्ति (देह-बल) का वर्चस्व है, आत्मबल (आध्यात्मिक शक्ति) कहीं नहीं रहा। लेखक का दर्द यह है कि ऐसे महान व्यक्तित्व अब कहीं नहीं मिलते।


प्रश्न 6: शिरीष के फूल को कालिदास ने विशेष महत्व क्यों दिया होगा?

उत्तर: कालिदास ने शिरीष को विशेष महत्व दिया क्योंकि वह एक बहुत ही कोमल फूल है। कालिदास को इस फूल की सूक्ष्मता और सौंदर्य पसंद आया। उन्होंने कहा है कि शिरीष केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव ही सहन कर सकता है, पक्षियों का नहीं। लेखक का मानना है कि कालिदास स्वयं एक अनासक्त योगी थे, इसलिए उन्हें शिरीष की सूक्ष्मता समझ में आई। जो कवि खुद में भावनाओं की गहराई नहीं रखते, वे इस फूल की सुंदरता को समझ ही नहीं सकते।


प्रश्न 7: वायुमंडल से रस खींचने वाले पेड़ों के बारे में लेखक क्या कहते हैं?

उत्तर: लेखक बताते हैं कि शिरीष एक ऐसा पेड़ है जो अपना रस वायुमंडल से सीधे खींचता है। भीषण लू और गर्मी में भी जब दूसरे पेड़ अपनी जड़ों से पानी खींचने में असफल रहते हैं, तब भी शिरीष ताजे और कोमल फूल निकाल लेता है। यह एक आश्चर्यजनक बात है। लेखक का कहना है कि ऐसे ही अवधूत होते हैं – जो बाहर की परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होते। वे आंतरिक शक्ति से काम लेते हैं। कबीर, गांधीजी और कालिदास भी ऐसे ही थे।


प्रश्न 8: अशोक के फूल को “भूल जाने” की बात लेखक कहते हैं – इसका मतलब क्या है?

उत्तर: लेखक का कहना है कि अशोक का फूल साहित्य में भूल गया है। पुराने समय में अशोक को बहुत महत्व दिया जाता था। लेकिन आज कोई इस फूल को याद नहीं करता। शिरीष भी ऐसे ही भूल गया है। लेखक को इस बात का अफसोस है कि कला और साहित्य में पुरानी चीज़ें भूल जाती हैं। वे जो कभी महत्वपूर्ण थीं, अब वे प्रासंगिक नहीं रहीं। यह संस्कृति और परंपरा के प्रति लेखक की चिंता का प्रकटीकरण है। उन्हें भय है कि हम अपनी परंपरा को भूल जाएँगे।


प्रश्न 9: लेखक ने कर्णाट राज की रानी के उदाहरण का क्या अर्थ है?

उत्तर: लेखक एक पुरानी कथा सुनाते हैं। कर्णाट राज की रानी ने कहा था कि कविता के क्षेत्र में केवल तीन ही कवि हैं – ब्रह्मा, वाल्मीकि और व्यास। उसका अर्थ है कि कुछ ही लोग सच्चे कवि हो सकते हैं। लेकिन लेखक यह भी कहते हैं कि कोई भी कवि बनने की कोशिश कर सकता है – बशर्ते वह फक्कड़ बन जाए। इसका मतलब है कि साहित्य केवल बड़े नामों के लिए नहीं है। कोई भी अगर सच्चे मन से रचना करे, तो वह कवि बन सकता है।


प्रश्न 10: निबंध का शीर्षक “शिरीष के फूल” कितना उपयुक्त है?

उत्तर: “शिरीष के फूल” निबंध का बहुत उपयुक्त शीर्षक है। सतही स्तर पर, यह एक छोटे से फूल की बात करता है। लेकिन गहरे स्तर पर, शिरीष का फूल एक प्रतीक है – जीवन में कठोरता और कोमलता दोनों का प्रतीक। यह सूक्ष्मता और शक्ति का मिश्रण है। यह अनासक्ति और भक्ति का संयोग है। शिरीष आशा, साहस, धैर्य और मनुष्य की अजेय जिजीविषा (जीने की इच्छा) को दर्शाता है। निबंध के माध्यम से लेखक कहना चाहते हैं कि जीवन की सभी कठिनाइयों के बावजूद, हमें शिरीष की तरह अपनी सुंदरता और गरिमा को बनाए रखना चाहिए।



Shirish Ke Phool Important Question Answer – Long Answer Questions

प्रश्न 1: हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन दर्शन को शिरीष के फूल के माध्यम से समझाइए।

उत्तर:

हजारी प्रसाद द्विवेदी एक महान साहित्यकार और विचारक हैं। उनका जीवन दर्शन शिरीष के फूल में पूरी तरह प्रतिबिंबित होता है।

1. अनासक्ति का दर्शन:

द्विवेदी जी मानते हैं कि मनुष्य को एक अवधूत की तरह जीना चाहिए – विषयों से मुक्त, अनासक्त। जीवन में सुख-दुःख दोनों आते हैं, लेकिन उन्हें समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। शिरीष की तरह, हमें भी सभी प्रतिकूलताओं में अपनी सुंदरता और गरिमा को बनाए रखना चाहिए। न तो सफलता से फूलो, न असफलता से टूटो।

2. कोमलता और कठोरता का संतुलन:

द्विवेदी जी के अनुसार, जीवन में कोमलता और कठोरता दोनों आवश्यक हैं। शिरीष बाहर से कोमल है (फूल का रूप), लेकिन भीतर से कठोर है (जड़ें मजबूत हैं)। मनुष्य को भी ऐसा ही होना चाहिए – हृदय से कोमल, लेकिन आचरण में दृढ़। गांधीजी इसका उदाहरण हैं।

3. निरंतर प्रवाह में विश्वास:

द्विवेदी जी मानते हैं कि जो जमे रहते हैं, वे मर जाते हैं। शिरीष सदा गतिशील रहता है – पुरानी पत्तियाँ गिरती हैं, नई आती हैं। इसी तरह समाज को भी निरंतर परिवर्तन में विश्वास करना चाहिए। पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी को जगह देनी चाहिए। स्थिरता ही मृत्यु है, गतिशीलता ही जीवन है।

4. विराट मानवतावाद:

द्विवेदी जी के जीवन दर्शन का केंद्र “विराट मानवतावाद” है। वे मनुष्य को सर्वोच्च मानते हैं। शिरीष के फूल की सुंदरता को वे मनुष्य की अजेय जिजीविषा का प्रतीक मानते हैं। भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल हों, मनुष्य को हार नहीं माननी चाहिए। जीवन की लड़ाई जारी रहनी चाहिए।

5. आत्मबल पर विश्वास:

द्विवेदी जी देह-बल (शारीरिक शक्ति) पर नहीं, बल्कि आत्मबल (आध्यात्मिक शक्ति) पर विश्वास करते हैं। शिरीष वायुमंडल से अपना रस खींचता है, बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। ठीक इसी तरह, मनुष्य को आंतरिक शक्ति से काम लेना चाहिए।

6. कला और साहित्य में मानवीय मूल्य:

द्विवेदी जी के अनुसार, साहित्य वह है जो मनुष्य को मानवीय बनाता है, उसके हृदय को संवेदनशील बनाता है। शिरीष जैसे निबंध मनुष्य को अपने जीवन के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष:

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन दर्शन आशावादी, मानवीय और गहन है। शिरीष के फूल में उन्हें जीवन का सार दिखता है। वे कहते हैं कि जो शिरीष की तरह रह सके – कोमल हो, कठोर हो, गतिशील हो, अनासक्त हो – वह सच्चा मनुष्य है। यही द्विवेदी जी का संदेश है।


प्रश्न 2: निबंध में लेखक ने शारीरिक शक्ति और आत्मबल के बीच किस प्रकार भेद दिखाया है? उदाहरणों से समझाइए।

उत्तर:

लेखक निबंध में शारीरिक शक्ति (देह-बल) और आत्मबल (मन-बल) के बीच एक स्पष्ट भेद दिखाते हैं। यह निबंध का एक महत्वपूर्ण विषय है।

शारीरिक शक्ति (Deah-Bal):

शारीरिक शक्ति बाहर की चीज़ है। यह मांसपेशियों, हथियारों, और शक्तिशाली शरीर में निहित है। जो केवल शारीरिक शक्ति पर निर्भर हैं, वे:

  • किसी भी परिस्थिति में सफल नहीं हो सकते
  • अगर बाहरी परिस्थितियाँ विरुद्ध हों, तो असहाय हो जाते हैं
  • हमेशा दूसरों के ऊपर निर्भर रहते हैं

उदाहरण: कर्णाट राज्य के राजा दुष्यंत थे, जो बहुत शक्तिशाली थे। लेकिन भावनाओं और विचारों के मामले में वे कमजोर थे। उन्हें शकुंतला के सौंदर्य के आगे अपनी सभी शक्ति अर्थहीन दिखी। राजा दुष्यंत की शारीरिक शक्ति उन्हें शकुंतला का चित्र बनाने से भी नहीं रोक सकी।

आत्मबल (Aatma-Bal):

आत्मबल आंतरिक शक्ति है। यह मन, बुद्धि, संकल्प और विचारों में निहित है। जिसके पास आत्मबल है, वह:

  • किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना कर सकता है
  • बाहर की परिस्थितियों से परे, आंतरिक शांति रखता है
  • दूसरों को प्रेरणा दे सकता है
  • सच्ची स्वतंत्रता पाता है

उदाहरण: गांधीजी आत्मबल के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उनके पास कोई सेना नहीं थी, कोई बड़ी शारीरिक शक्ति नहीं थी। लेकिन उनके आत्मबल ने पूरे भारत को हिला दिया। वे अपने विचारों और सत्य की शक्ति से लड़े। गांधीजी को देखकर लेखक को शिरीष याद आता है – दोनों ही वायुमंडल से रस खींचते हैं।

लेखक का विश्लेषण:

लेखक कहते हैं कि आजकल का समय केवल शारीरिक शक्ति को ही महत्व देता है – “आज का समय केवल देह-बल को ही मानता है, आत्मबल कहीं नहीं है।” यह समाज के लिए एक खतरे की बात है।

प्रकृति का उदाहरण:

शिरीष प्रकृति का एक बेजोड़ उदाहरण है। शिरीष के पास कोई शारीरिक शक्ति नहीं है। फूल कितना कोमल है! लेकिन गर्मी की सबसे भीषण परिस्थिति में भी, जब दूसरे पेड़ सूख जाते हैं, शिरीष ताजे फूल निकाल देता है। क्यों? क्योंकि उसके पास आंतरिक शक्ति है। वह वायुमंडल से सीधे अपना रस खींचता है।

मनुष्य के लिए संदेश:

लेखक के अनुसार, मनुष्य को भी:

  1. शारीरिक शक्ति पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए
  2. आत्मबल, विचार, सत्य और नैतिकता को महत्व देना चाहिए
  3. आंतरिक शांति और दृढ़ संकल्प विकसित करना चाहिए
  4. कठिन परिस्थितियों में भी अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए

वर्तमान समय का संकट:

लेखक दुःख के साथ कहते हैं – “हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” गांधीजी (जिनके पास आत्मबल था) अब नहीं हैं। आज का समय केवल शारीरिक और आर्थिक शक्ति को मानता है। इससे समाज आधिकारिक, स्वार्थी, और अमानवीय बनता जा रहा है।

निष्कर्ष:

लेखक का संदेश स्पष्ट है – शारीरिक शक्ति अस्थिर है, लेकिन आत्मबल अमर है। शिरीष की तरह, हमें भी आत्मबल पर निर्भर करना चाहिए। यही मनुष्य का सच्चा विकास है।


प्रश्न 3: “जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका” – इस कथन को निबंध के संदर्भ में समझाइए।

उत्तर:

यह निबंध का एक केंद्रीय और गहन विचार है। लेखक यहाँ कविता (साहित्य) के सर्वोच्च मानदंड को स्थापित करते हैं।

अनासक्ति का अर्थ:

अनासक्त होने का मतलब है – विषय-भोगों से मुक्त रहना, लाभ-हानि की चिंता न करना, प्रशंसा-निंदा से परे रहना। एक अनासक्त कवि:

  • किसी के लिए मोह नहीं पालता
  • किसी की प्रशंसा सुनकर फूलता नहीं
  • किसी की निंदा सुनकर टूटता नहीं
  • अपनी रचना के लिए कोई इनाम या पुरस्कार की अपेक्षा नहीं करता
  • अपनी रचना को “अपनी” नहीं मानता, बल्कि समाज के लिए मानता है

फक्कड़ होने का अर्थ:

फक्कड़ मतलब मस्त, बेफिक्र, अलिप्त। फक्कड़ कवि:

  • दिन-रात की चिंता नहीं करता
  • किए-कराए का लेखा-जोखा नहीं रखता
  • “मेरा-तेरा” का भेद नहीं मानता
  • पैसे, प्रसिद्धि, शक्ति की चिंता नहीं करता
  • सदा “वर्तमान” में रहता है
  • भविष्य की चिंता या अतीत का पश्चाताप नहीं करता

उदाहरण: कबीर फक्कड़ थे। उन्होंने राजा-महाराजाओं से कोई गुजारिश नहीं की। शाह जहाँ जैसे बादशाह भी उनके सामने असहाय थे। उन्होंने अपने विचार सीधे कहे, बिना किसी लाभ-हानि की चिंता के।

कवि और कविता का सार:

लेखक के अनुसार, सच्चा कवि वह है जो:

  1. आत्मानुशासन रखे: अपने भीतर एक अनासक्त योगी को बैठा रखे। यह उसे भावनाओं पर नियंत्रण देता है।
  2. हृदय की संवेदनशीलता रखे: साथ ही, एक प्रेमी का हृदय हो। यह उसे सबके दुःख को समझने की क्षमता देता है।
  3. कोई परिणाम की अपेक्षा न करे: जो कविता लिखता है, वह सफलता या असफलता की चिंता न करे। बस रचना करता रहे।
  4. नई और पुरानी में भेद न करे: कविता सदा नई है, सदा ताजा है। कोई भी विषय सड़ा-गला नहीं है।

क्या होता है जब कवि अनासक्त नहीं रहते:

अगर कवि अनासक्त नहीं है, तो:

  • वह प्रशंसा के लिए लिखता है
  • राजाओं-महाराजाओं को खुश करने के लिए लिखता है
  • गलत विचार भी अपनाता है अगर उससे प्रसिद्धि मिले
  • अपनी रचना से “मेरा-पन” नहीं हटाता
  • दूसरे कवियों से प्रतिद्वंद्विता रखता है
  • अपने समय के लिए लिखता है, चिरकाल के लिए नहीं

उदाहरण: जो कवि दरबार के कवि हो जाते हैं, वे कभी महान कवि नहीं बन सकते। उन्हें राजा को खुश करना है, इसलिए वे झूठी प्रशंसा लिखते हैं। उनकी रचना झूठ पर आधारित होती है।

कालिदास का उदाहरण:

कालिदास इसलिए महान थे क्योंकि वे अनासक्त रह सके। उन्हें राजा की प्रशंसा चाहे न हो, लेकिन वे अपनी रचना में सत्य की खोज करते रहे। उन्होंने “मेघदूत” लिखा – एक अलंकारहीन, सरल, लेकिन गहन रचना। इसमें कोई राजनीतिक या व्यावहारिक लाभ नहीं था, बस शुद्ध कविता थी।

लेखक का आग्रह:

लेखक युवा लेखकों से कहते हैं – “कवि बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।” इसका मतलब है:

  • दुनियादारी को छोड़ो
  • प्रसिद्धि की चाहना छोड़ो
  • अपनी रचना से “अहं” हटा दो
  • सत्य और सौंदर्य के लिए लिखो
  • बस रचना करो, परिणाम की चिंता मत करो

निष्कर्ष:

यह कथन निबंध का हृदय है। लेखक कह रहे हैं कि कविता एक उच्च कला है, एक आध्यात्मिक साधना है। इसे अनासक्ति और फक्कड़पन की जरूरत है। यही कारण है कि वास्तविक काव्य सदा अमर रहता है, और कवि भी अमर हो जाते हैं। शिरीष इसी तरह फक्कड़ है – मस्त, बेफिक्र, हर परिस्थिति में अपनी सुंदरता को बनाए रखते हुए।


प्रश्न 4: निबंध में लेखक ने साहित्य के किन महत्वपूर्ण उद्देश्यों को रेखांकित किया है?

उत्तर:

हजारी प्रसाद द्विवेदी एक बहुत ही दायित्वशील साहित्यकार हैं। उनके अनुसार, साहित्य के कुछ विशिष्ट और महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हैं।

1. मनुष्य को मानवीय बनाना:

लेखक कहते हैं – “मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ।” साहित्य का प्रथम उद्देश्य मनुष्य को मानवीय बनाना है। जो साहित्य:

  • मनुष्य को दुर्गति से न बचा सके
  • उसकी आत्मा को तेजस्वी न बना सके
  • उसके हृदय को संवेदनशील न बना सके

ऐसा साहित्य साहित्य ही नहीं है। यह केवल शब्दों का खेल है।

2. हृदय को संवेदनशील बनाना:

साहित्य को मनुष्य के हृदय को “परदुखकातर” (दूसरों के दुःख से विकल) बनाना चाहिए। एक संवेदनशील हृदय:

  • दूसरों के दुःख को महसूस करता है
  • सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूक रहता है
  • सहानुभूति और करुणा रखता है
  • समाज में परिवर्तन लाना चाहता है

शिरीष के निबंध को पढ़कर मनुष्य यह सोचता है कि जीवन में संघर्ष जारी रहता है। इससे उसका हृदय संवेदनशील होता है।

3. आत्मबल को जागृत करना:

साहित्य को मनुष्य के भीतर आत्मबल जागृत करना चाहिए। गांधीजी का उदाहरण देते हुए, लेखक यह बताते हैं कि साहित्य को:

  • निराशा के समय आशा जगानी चाहिए
  • कठिन परिस्थितियों में साहस देना चाहिए
  • अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देनी चाहिए

4. जिजीविषा (जीवन-इच्छा) को प्रबल करना:

साहित्य को मनुष्य की “अजेय जिजीविषा” को प्रकट और प्रबल करना चाहिए। मनुष्य कितनी भी कठिन परिस्थितियों में हार न माने। शिरीष इसका उदाहरण है – भीषण गर्मी में भी जीवन के नए फूल खिल जाते हैं।

5. सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा:

लेखक को अफसोस है कि अशोक जैसे महत्वपूर्ण फूल को भूल गया है। साहित्य को:

  • परंपरा और संस्कृति को जीवंत रखना चाहिए
  • पुरानी चीज़ों को भूलने से रोकना चाहिए
  • सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना चाहिए

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